समाज में तेजी से बढ़ रहे अपराध, विशेषकर महिलाओं और किशोरियों के साथ दुष्कर्म की घटनाओं में मोबाइल, सिनेमा और टीवी के योगदान के संदर्भ में देश के नये प्रधान न्यायाधीश एस.ए. बोबडे की टिप्पणी काफी महत्वपूर्ण है। प्रधान न्यायाधीश की टिप्पणी पर हमें व्यापक परिप्रेक्ष्य में गंभीर मंथन करना होगा। महिलाओं से दुष्कर्म और सबूत मिटाने के इरादे से उन्हें जलाकर मार डालने की घटनाओं में आयी अभूतपूर्व तेजी कारकों का पता लगाने और ठोस समाधान खोजने के लिये मजबूर कर रही है।
समाज के एक वर्ग में वहशी प्रवृत्ति तेजी से बढ़ रही है और जिसका शिकार मासूम बच्चियों से लेकर उम्रदराज महिलाएं तक हो रही हैं, उसी के मद्देनजर कानून में संशोधन करके इस तरह के अपराध के जुर्म में मौत की सजा तक का प्रावधान किया गया। लेकिन इसके बावजूद इन घटनाओं में कमी नहीं आयी।
इन घटनाओं पर संसद ने भी चिंता व्यक्त की है। इंटरनेट और सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर आसानी से बहुतायत में उपलब्ध बच्चों के यौन शोषण और यौनाचार से संबंधित अश्लील सामग्री पर संसद में सदस्यों ने गहरी चिंता व्यक्त की और इस पर अंकुश लगाने की आवश्यकता पर जोर दिया है।
स्थिति की गंभीरता को देखते हुये राज्यसभा के सभापति एम. वेंकैया नायडू ने कांग्रेस के जयराम रमेश की अध्यक्षता में एक अनौपचारिक समूह का गठन किया है जो इंटरनेट और सोशल मीडिया पर अश्लील सामग्री से संबंधी मुद्दों का अध्ययन करेगा। सांसदों का यह अनौपचारिक समूह एक महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट राज्यसभा के सभापति को सौंपेगा।
सांसदों का यह समूह समाज के विभिन्न वर्गों के साथ ही कानून लागू करने वाली अनेक एजेंसियों, दूरसंचार नियामक प्राधिकरण, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग और टिकटाक, व्हाट्सएप, गूगल, फेसबुक और माइक्रोसॉफ्ट जैसी सोशल मीडिया कंपनियों के साथ भी इस संवेदनशील मुद्दे पर चर्चा करेगी।
राज्यसभा के सदस्यों की अनौपचारिक समिति का गठन निश्चित ही इंटरनेट के माध्यम से सहजता से उपलब्ध अश्लील सामग्री पर नियंत्रण लगाने के उपाय खोजने की दिशा में एक सकारात्मक कदम है। लेकिन सामाजिक ताने-बाने को बुरी तरह प्रभावित करने और विकृत मानसिकता को जन्म देने वाले ऐसे मुद्दों की ओर सरकार का रवैया हमेशा ही उदासीनता भरा देखने को मिला है।
सूचना क्रांति के इस दौर में जब दुनिया की तमाम जानकारियां एक क्लिक में आपके सामने उपलब्ध हों तो ऐसी स्थिति में कुंठित मानसिकता वाले भी इसका दुरुपयोग करने से बाज नहीं आते हैं।
चाइल्ड पोर्नोग्राफी परोसने वाली वेबसाइटों पर प्रतिबंध लगाने का मसला भी कई साल से शीर्ष अदालत की न्यायिक समीक्षा के दायरे में है। गैर-सरकारी संगठन 'प्रज्वलाÓ की जनहित याचिका पर न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद सरकार इस तरह की सामग्री उपलब्ध कराने वाली हजारों साइट प्रतिबंधित कर चुकी है लेकिन इसके बावजूद अभी भी अश्लील सामग्री उपलब्ध कराने वाली वेबसाइटें बड़ी संख्या में सक्रिय हैं।
यौन हिंसा की जड़ों पर जरूरी प्रहार