उम्मीदों पर नश्तर


यह बहुत गंभीर चिंता का विषय है कि दूध-दही के खाने के लिये मशहूर हरियाणा के कुछ दिगभ्रमित किशोर नशे की दलदल में उतरने लगे हैं। जो हरियाणा अपनी खेल प्रतिभाओं के बूते गौरवान्वित महसूस करता है, उसकी भावी पीढ़ी नशे की दहलीज पर कदम रखे तो यह हम सब की चिंता का विषय होना चाहिए। नशा पीडि़तों के उपचार केंद्रों में पिछले एक दशक में नशा करने वालों की संख्या में दस गुना इजाफा होना हमारी बेचैनी बढ़ाने वाला है। पीजीआई रोहतक से आयी वह रिपोर्ट हर अभिभावक के माथे पर चिंता की लकीरें उभारती है कि स्कूली छात्र तेजी से नशीले पदार्थों के सेवन के आदी होते जा रहे हैं। पीजीआई रोहतक स्थित नशे की गिरफ्त में आने वालों के उपचार केंद्र एसडीडीटीसी में 10 से 19 वर्ष के बीच 268 पीडि़त आए हैं। ये नशे के आदी वर्ष 2016 से 2018 के बीच उपचार के लिये आये हैं। राज्य ड्रग डिपेंडेंस ट्रीटमेंट सेंटर (एसडीडीटीसी) में?भर्ती किशोरों को देखकर उनके परिजन भी हैरत में हैं कि कब उनके बच्चे नशे की अंधी गलियों में उतर गये। इन किशोरों में 143 ऐसे थे जो स्कूल छोड़ चुके थे और 89 छात्र हैं। पहले किशोर बीड़ी-सिगरेट पीने वाले युवाओं के समूह में शामिल होते हैं और फिर नशेडिय़ों के संपर्क में आकर नशा करने लगते हैं। नशे की सप्लाई करने वाले ड्रग पेडलर्स पहले किशोरों को मुफ्त नशा सप्लाई करते हैं। फिर जब वे इसके आदी होने लगते हैं तो फिर नशे के शौकीन किशोरों से पैसे वसूलने लगते हैं। फिर उनसे येन-केन प्रकारेण रुपया लाने को कहा जाता है। वे फिर चोरी व अन्य अपराधों के जरिये पैसा जुटाने की कोशिश करते हैं। नशे और अपराध का रिश्ता कालांतर भयावह परिणामों को जन्म देता है। चिंता की बात यह भी है कि अब स्मैक व हेरोइन के परंपरागत सेवन के तरीके से इतर इंजेक्शन से नशा लेने की प्रवृत्ति बढ़ी है, जिससे एचआईवी व हेपेटाइटिस जैसे संक्रामक रोगों का खतरा बढ़ गया है।
आखिर वे कौन-सी परिस्थितियां हैं जो किशोरों को नशे की दलदल में धकेल रही हैं। ड्रग डिपेंडेंस ट्रीटमेंट सेंटर में चिकित्सकों का अध्ययन बताता है कि अधिकांश किशोर एकल परिवारों का हिस्सा हैं या फिर उनके माता-पिता कामकाजी हैं, जिनके जीवन में अकेलापन है। उनके मां-बाप उनको सामान्य से अधिक जेब खर्च देते हैं। हाथ में पैसा होना और नशीले पदार्थों की सहज उपलब्धता भी नशे की ओर उन्मुख होने की बड़ी वजह है। ऐसे मामलों से बचने के लिये अभिभावकों को चिकित्सकों की सलाह लेनी चाहिए। यदि बच्चे का व्यवहार असामान्य दिखे तो उसे गंभीरता से लिया जाना चाहिए। वहीं शिक्षकों से भी संवेदनशील व जिम्मेदाराना व्यवहार की उम्मीद की जाती है। यदि अभिभावक महसूस करें ?कि उनका बच्चा पढ़ाई व दैनिक जीवन में लापरवाही दिखा रहा है, सामान्य संवाद से कटा रहता है, उसकी शारीरिक सक्रियता व मनोरंजन में दिलचस्पी कम रहती है, लगातार थकान महसूस करता है, आक्रामक ढंग से तर्क-वितर्क करते हुए अक्सर झगड़ा करने पर उतारू होता है तो उस बाबत चिकित्सकों से सलाह ली जानी चाहिए। घर में पैसा व कीमती चीजें गायब होने पर नजर रखी जा सकती है क्योंकि नशे के आदी किशोर धन जुटाने के लिये कुछ भी कर सकते हैं। उनकी आपराधिक गतिविधियों में सक्रियता भी बढ़ सकती है। बार-बार होने वाली दुर्घटनाएं भी इसके लक्षण हो सकते हैं। परिजन महसूस करें कि उनके बच्चे की भूख व शारीरिक वजन में कहीं कमी तो नहीं आ रही है। ज्यादा पसीना तथा ज्यादा नींद भी नशे की लत का परिचायक हो सकता है। यह विडंबना ही है कि देश में 10 वर्ष से 19 वर्ष के बीच के किशोरों का प्रतिशत देश की ?आबादी में 22.8 है।?मगर इसके बावजूद उनकी नशे में संलिप्तता को लेकर कोई गंभीर शोध अभी तक सामने नहीं आया है।
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