अहंकार से विरक्ति


शिबली एक असाधारण सूफ़ी संत थे। प्रारम्भ में वह नगर के अमीर थे और तमाम संसारियों की तरह ही उनका व्यवहार था, मगर अनायास घटी एक घटना ने उनके जीवन में विरक्ति ला दी। एक उत्सव के अवसर पर खलीफा ने अपने सभी दरबारियों को वस्त्रों की एक-एक जोड़ी उपहार में दी। उपहार पाकर सब दरबारी प्रसन्नतापूर्वक अपने-अपने घर जा रहे थे। तभी एक दरबारी को अचानक छींक आ गई। उसने खलीफा द्वारा दिए गए वस्त्रों से ही अपनी नाक पोंछ ली जो खलीफा से छुपा न रह सका। खलीफा ने उसे बुलाकर उससे वस्त्र वापिस ले लिए और बाहर का रास्ता दिखा दिया। शिबली भी खलीफा के दिए हुए वस्त्र ही पहने हुए थे। यह देखकर उनकी आत्मा जाग उठी और अपने आसन से उठकर खलीफा के पास जा पहुंचे और बोले-तू अहंकारी है और अपने उपहारों का अपमान नहीं सह सकता। तब वह, जो सारी दुनिया का मालिक है, कैसे अपने बंदों का अपमान सह सकता है। यह कहकर शिबली ने खलीफा के दिए हुए सारे वस्त्र उतार दिए और दरबार छोड़कर संत बगदादी की शरण में चले गए।


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