बाढ़ के साथ जीने की कला तलाशिए



वर्तमान में देश में एक स्थान पर सूखा तो दूसरे स्थान पर बाढ़ आ रही है। यह विचार पनपता है कि बाढ़ के क्षेत्र से यदि पानी को सूखे क्षेत्र तक पहुंचा दिया जाये तो दोनों ही क्षेत्रों की समस्या हल हो जाएगी। यह धारणा इस सोच पर आधारित है कि कुछ नदियों में जरूरत से अधिक पानी उपलब्ध है। इतना सही है कि कुछ नदियों में बाढ़ आती है और उससे जानमाल का नुकसान होता है। लेकिन इसके सामने बाढ़ के कई लाभ भी हैं। सबसे बड़ा लाभ है कि बाढ़ का पानी विस्तृत क्षेत्र में फैलता है, जिसके कारण पानी भूगर्भीय तालाबों में रिस्ता है। लगभग 1 मीटर पानी का स्तर उसे 1 किलोमीटर दूर तक पहुंचा देता है। यानी बाढ़ का पानी 100 किलोमीटर दूर आपको 100 मीटर की गहराई पर मिल जायेगा। अत: बाढ़ से लगभग 200 किलोमीटर क्षेत्र में भूगर्भीय जल का पुनर्भरण होता है। इस प्रकार बाढ़ के पानी को यदि हम दूसरे क्षेत्र में ले जाते हैं तो देने वाले क्षेत्र में पुनर्भरण कम होगा। तदनुसार सिंचाई कम होगी जबकि पानी प्राप्त करने वाले क्षेत्र में सिंचाई का विस्तार होगा।
बाढ़ का दूसरा लाभ है कि कई वर्षों से नदी के पेटे में जमा हो रही गाद को बाढ़ बहा कर समुद्र तक ले जाती है। यदि बाढ़ नहीं आये तो पानी में वेग उत्पन्न नहीं होता है जो कि जमी हुई गाद को सागर तक पहुंचा सके। यदि गाद समुद्र तक न पहुंचाई जाये तो नदी का तल ऊंचा हो जाता है और बाढ़ ज्यादा आती है। बड़ी बाढ़ को रोक कर हम वास्तव में हर साल आने वाली बाढ़ के प्रकोप को बढ़ा रहे हैं।
नदी जोड़ो परियोजना में एक और समस्या है। कोई भी राज्य अपना पानी देने को तैयार नहीं है। जैसा कि हम पंजाब एवं हरियाणा तथा कर्नाटक एवं तमिलनाडु के विवादों में देख रहे हैं। पंजाब में कुछ क्षेत्रों में जलभराव हो रहा है। फिर भी पंजाब अपना पानी देने को तैयार नहीं है। इस परिस्थिति में अन्तर्राज्यीय नदी जोडऩे के कार्यक्रम कतई सफल नहीं हो सकते हैं। अधिकाधिक एक ही राज्य में बहने वाली दो नदियों को जोडऩे का छोटा-मोटा प्रयास किया जा सकता है।
लेकिन यह भी सही है कि यदि पंजाब में जलभराव हो रहा है और राजस्थान में सूखा आ रहा है तो देश के लिए यह लाभप्रद है कि पंजाब के कुछ पानी को राजस्थान में पहुंचाया जाए। इसका उपाय यह है कि हम बिजली की नेशनल ग्रिड की तर्ज पर एक पानी का नेशनल ग्रिड बनाएं। पंजाब अपने पानी को बेचे और राजस्थान उसे खरीदे। उससे फायदा यह होगा कि पंजाब और राजस्थान दोनों ही पानी की असल कीमत को समझेंगे। पंजाब अपने किसानों द्वारा पानी की बर्बादी को रोक कर, उस बचे हुए पानी को बेच कर समृद्ध होगा और राजस्थान खरीदे गये पानी का सदुपयोग करके समृद्ध होगा। लेकिन इस पानी को ले जाने के लिए किसी नदी को नाले की तरह उपयोग करना उचित नहीं है। सरकार नेशनल वाटर ग्रिड बनाये, पाइपों अथवा नहरों के माध्यम से एक राज्य से दूसरे राज्य को पानी ले जाये।
आगामी समय में ग्लोबल वार्मिंग के चलते कम समय में तीव्र वर्षा होगी। पूर्व में यदि किसी स्थान पर साल में 90 दिन वर्षा होती थी तो भविष्य में वर्षा की मात्रा उतनी ही रहेगी लेकिन वह पानी 90 दिन के स्थान पर केवल 30 दिन में गिरेगा। ऐसे में बाढ़ का प्रकोप बढेगा जैसा कि हम इस समय देश के तमाम हिस्सों में देख रहे हैं। इस बढ़ते हुए संकट को हम नहरों के माध्यम से एक नदी के पानी को दूसरी नदी में ले जाकर नहीं संभाल पाएंगे, चूंकि तीव्र वर्षा के समय पानी की मात्रा अधिक होगी।
इसलिए सरकार को चाहिए कि पानी को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने के बजाय जहां पर पानी गिरता है वहीं पर उसे भूगर्भीय तालाबों में संगृहीत करने के उपाय करे। जिस प्रकार हम कुआं खोदकर नीचे से पानी निकालते हैं, उसी प्रकार रिचार्ज कुएं बनाये जा सकते हैं, जिनके माध्यम से हम बाढ़ के पानी को भूमि के अंदर विद्यमान तालाबों में प्रवेश करा सकते हैं। इस प्रकार के रिचार्ज कुओं को बनाना चाहिए और साथ-साथ तालाबों और चेक डैम को बनाकर जहां पर वर्षा का पानी गिर रहा है वहीं उसके संग्रहण की समुचित व्यवस्था करनी चाहिए। पानी की खपत को भी कम करना होगा। अपने देश में पानी की 80 प्रतिशत खपत कृषि में होती है। इसका एक बड़ा हिस्सा गन्ना, मिन्था, लाल मिर्च और अंगूर जैसी विलासिता की फसलों के लिए होता है। इनका निर्यात भी भारी मात्रा में किया जाता है। हमें चाहिए कि कृषि में पानी की खपत कम करने के लिए इन फसलों का उत्पादन केवल उन क्षेत्रों में होने दें जहां बाढ़ आती है।
बाढ़ से जानमाल के होने वाले नुकसान को भी ध्यान में रखना होगा। बाढ़ को पूर्णतया रोकने के स्थान पर बाढ़ के साथ जीने की कला को विकसित करना चाहिए। कुछ वर्ष पूर्व गोरखपुर की बाढ़ का अध्ययन करने पर लोगों ने बताया कि गांवों को ऊंचे स्थानों पर बनाया जाता था। उन स्थानों पर हैन्डपम्प की व्यवस्था की जाती थी ताकि बाढ़ में पीने के पानी की परेशानी न हो। सड़कों के नीचे पानी के बहाव के पर्याप्त स्थान छोड़ दिए जाएं तो बाढ़ एक पतली चादर की तरह विस्तृत क्षेत्र में फैलकर बहती है और बाढ़ का पानी ऊंचा ज्यादा नहीं उठता है, चूंकि उसके बहने की समुचित व्यवस्था बनी रहती है। अतएव बाढ़ के पानी से होने वाला नुकसान कम हो जाता है।
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