लंबे समय से कहा जा रहा था कि भाजपा नवंबर 2020 तक उच्च सदन राज्यसभा में अपने बूते बहुमत जुटा लेगी। मगर हाल ही में राजग सरकार ने कई ऐसे विधेयक राज्यसभा से सफलतापूर्वक पारित करवा लिये, जिनके पारित होने की दूर-दूर तक संभावना नजर नहीं आ रही थी। इन विधेयकों के अंतर्विरोध व विपक्षी दलों के मुखर विरोध के चलते ये संभव नहीं था। मोदी सरकार पिछले कार्यकाल में भी कुछ विधेयकों को पारित कराने की असफल कोशिश कर चुकी थी। सोमवार को जम्मू-कश्मीर से जुड़े अनुच्छेद-370 के प्रावधानों को खत्म करने व राज्य पुनर्गठन विधेयक पारित करवाकर भाजपा ने सबको चौंकाया। यह भाजपा के प्रबंधकों के चातुर्य का ही परिणाम था कि भाजपा व बिल के मुखर विरोधी या तो बिल के समर्थन में आ गये या अनुपस्थित रहकर अथवा वाकआउट करके भाजपा सरकार के हाथ मजबूत कर गये। पिछले कुछ?ही दिनों में सूचना का अधिकार कानून में संशोधन, विधि विरुद्ध क्रियाकलाप निवारण संशोधन विधेयक (यूपीपीए), नेशनल मेडिकल कमीशन, तीन तलाक को अपराध घोषित करने वाले मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण विधेयक-2019 और अब अनुच्छेद-370 को खत्म करने वाला विधेयक पारित होना भाजपा के कुशल राजनीतिक प्रबंधन की ही मिसाल है। दरअसल, भाजपा ने कुछ क्षेत्रीय दलों मसलन टीआरएस, बीजद, वाईएसआर व अन्नाद्रुमक जैसे दलों को साधने में कामयाबी हासिल की है। ये दल चाहते हैं कि केंद्र से बेहतर संबंध बने रहें ताकि उनकी लोककल्याणकारी योजनाओं के लिए वित्तीय संसाधन जुटाये जा सकें। कुछ राजनीतिक दल केंद्र द्वारा सीबीआई और ईडी जैसे विभागों के राजनीतिक हितों के लिये इस्तेमाल से भी सशंकित रहते हैं। यही वजह है कि भाजपा व नरेंद्र मोदी के खिलाफ मुखर रही बहुजन समाज पार्टी जहां तीन तलाक विधेयक पर मतदान के दौरान अनुपस्थित रही, वहीं अनुच्छेद-370 को समाप्त करने वाले विधेयक के समर्थन में आ खड़ी हुई, जिसने भाजपा सरकार के मंसूबों को अंजाम देने में प्रत्यक्ष या परोक्ष मदद ही की।
दरअसल, दूसरी पारी में प्रबल बहुमत के साथ सत्ता में आए नरेंद्र मोदी पहले के मुकाबले ज्यादा आत्मविश्वास से भरे हैं। वे भाजपा के मूल एजेंडे को सिरे चढ़ाकर अपने समर्थकों को दिखाना चाहते हैं कि वे जो कहते हैं, उसे करके दिखा देते हैं। जहां भाजपा अपने कुशल फ्लोर प्रबंधन को अमलीजामा पहनाने में सफल रही है, वहीं मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस नेतृत्व संकट से जूझ रही है। आत्मबल की कमी के चलते वह विपक्ष को इन महत्वपूर्ण विधेयकों को पारित होने से रोकने के लिये लामबंद करने में असफल रही है। यही वजह है कि कांग्रेस के ही कई दिग्गज महत्वपूर्ण विधेयकों को पारित करने से रोकने के लिये सदन से नदारद रहे हैं। उन्हें मालूम है कि कमजोर नेतृत्व उनके खिलाफ कार्रवाई करने में हिचकेगा। इसके अलावा कई राजनीतिक दलों के राज्यसभा सांसदों के पार्टी छोडऩे और भाजपा में शामिल होने का सिलसिला जारी है। राजग के घटक जद-यू ने कई बार विधेयकों के विरोध में सदन से वाकआउट किया, जो कहीं न कहीं सदन में बहुमत के आंकड़े को नीचे लाकर अपरोक्ष रूप से भाजपा की मदद करने वाला ही साबित हुआ है। सदन में सांसदों के व्यवहार इतने अप्रत्याशित रहे हैं कि ठीक-ठीक कह पाना मुश्किल है कि कौन विरोध में था और कौन अपरोक्ष रूप से सरकार की मदद कर रहा था। तीन तलाक का मुखर विरोध करने वालों की मतदान के दौरान अनुपस्थिति इसी ओर इशारा करती है। क्षेत्रीय दलों को अपने पक्ष में जुटाने के अलावा भाजपा ने विभिन्न राजनीतिक दलों में भी सेंधमारी की है। राज्यसभा में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 के प्रावधान को हटाने व राज्य पुनर्गठन बिल के विरोध में सोमवार को दिनभर हंगामा चलता रहा लेकिन जब वोटिंग हुई तो पक्ष में 125 और विपक्ष में 61 वोट पड़े ?जो भाजपा के कुशल प्रबंधन व विपक्षी दलों की राजनीतिक निष्ठाओं को ही उजागर करती है।
बहुमत का करिश्मा