आखिरकार भाजपा की मोदी सरकार ने दशकों से पार्टी के जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाने के बहुप्रचारित एजेंडे को मूर्त रूप दे ही दिया। पिछले कुछ समय से कश्मीर में जो अप्रत्याशित घटनाक्रम घटित हो रहे थे, जम्मू-कश्मीर ही नहीं, देश-दुनिया में भी कयास लगाये जा रहे थे कि कुछ बड़ा होने वाला है। नि:संदेह 370 को निरस्त करना, समान नागरिक संहिता लागू करना और अयोध्या में राम मंदिर बनाना भाजपा का मुख्य राजनीतिक कार्यक्रम रहा है। कई दशकों से ये मुद्दे पार्टी के घोषणापत्र में शामिल होते रहे हैं। इसमें दो राय नहीं कि जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को खत्म करना राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और उसके राजनीतिक चेहरे जनसंघ तथा भारतीय जनता पार्टी का पुराना राजनीतिक विचार रहा है। यहां तक कि जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने भी इस मुद्दे पर असहमति के चलते 1950 में पंडित जवाहरलाल नेहरू के मंत्रिमंडल से त्यागपत्र दे दिया था। यह वह दौर था जब देश की अधिकांश रियासतें भारतीय संघ में शामिल की जा रही थीं। ये रियासतें अपनी शासकीय परंपराओं, ध्वज व अन्य प्रतीक चिन्हों की विशिष्टताओं को बनाये रखने के लिये खास दर्जा चाहती थी। पहले राजा या शासक के रूप में खास अधिकार रखते थे, उसे लोकतांत्रिक व्यवस्था में विशिष्टता के रूप में चाहते थे। तब जम्मू-कश्मीर के शेख अब्दुल्ला चाहते थे कि यह विशिष्ट दर्जा उनके राज्य को हिंदू बहुल राष्ट्र में शामिल होने पर हितों को अक्षुण्ण बनाये रखने के तौर पर मिले। वहीं पं. जवाहर लाल नेहरू ने इस विचार को सांस्कृतिक विविधता वाले भारत की प्रतिष्ठा में वृद्धि करने तथा मोहम्मद अली जिन्ना की अलग पहचान वाली राजनीति को हराने के लिये सहमति दी। यह विशिष्टता का दर्जा कालांतर सात दशक तक अपनी विसंगतियों के बीच विद्यमान रहा।
आखिरकार आजादी के सात दशक बाद अब जम्मू-कश्मीर अपने विशेष दर्जे से वंचित होने वाला है। उसका विभाजन अब नये प्रावधानों के अनुसार दो केंद्र शासित प्रदेशों के रूप में सामने आएगा। एक केंद्र शासित प्रदेश के रूप में जम्मू और कश्मीर, जहां विधानसभा होगी। वहीं दूसरा केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख होगा, जो उपराज्यपाल के अधीन होगा, मगर वहां विधानसभा नहीं होगी। इस बात में आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि वर्ष 2002 में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने एक प्रस्ताव परित करके जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के विभाजन के रूप में मांग की थी। तब केंद्र ने राज्यसभा में अनुच्छेद 370 खत्म करने के प्रस्ताव को रद्द कर दिया था। यह संयोग नहीं है कि भाजपा की मोदी सरकार राज्यसभा में मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण विधेयक-2019 को पारित करवाने के तुरंत बाद जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को खत्म करने की तरफ बढ़ी है। इस तरह वह अपने पुराने समान नागरिक संहिता के एजेंडे की तरफ बढ़ती नजर आ रही है। इस तरह देखा जाये तो अब राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ व भारतीय जनता पार्टी का मुख्य मुद्दा राम मंदिर ही प्राथमिकताओं में रहेगा। भाजपा दलील दे सकती है कि वह नये जनादेश के लिये किये गये वादों को ही अमलीजामा पहना रही है, जिसका उसने अपने चुनाव घोषणापत्र में भी वादा किया था। उसने तीन माह से भी कम समय पहलेे संपन्न बेहद ध्रुवीकरण वाले चुनाव के दौरान मतदाताओं से ये वादे जोर-शोर से किये थे। नि:संदेह सरकार की इस कोशिश के कई राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव भी सामने आयेंगे। जाहिर है सरकार ने इन चुनौतियों से मुकाबले को लेकर गहन मंथन किया होगा। अंतर्राष्ट्रीय राजनय, संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रस्तावों और पड़ोस की प्रतिक्रिया की कसौटी में इस निर्णय का मूल्यांकन होगा। वहीं सरकार दिल्ली और घाटी में अधिक पारदर्शिता के साथ आगे बढ़ सकती है।
भाजपा का एजेंडा