भूटान की राजधानी थिंपू से पांच किलोमीटर दक्षिण में किलेनुमा मठ है। नाम है, सिमटोखा ज़ोंग! इस प्राचीन किले को 1629 में नामग्याल राजा झाबद्रोंग न्गावांग रिनपोछे ने बनवाया था। सिमटोखा ज़ोंग भूटान के एकीकरण का प्रतीक है। पीएम मोदी और भूटान के प्रधानमंत्री लोटे छिरिंग 17 अगस्त को सिमटोखा ज़ोंग में थे। यहां झाबद्रोंग रिनपोछे की प्रतिमा के आगे भारत-भूटान के बीच दस समझौतों पर हस्ताक्षर किये गये। इनमें स्पेस रिसर्च, हवाई सुरक्षा, सूचना तकनीक, जल विद्युत विपणन, अकादमिक समझौतों को शामिल कर पीएम मोदी ने संदेश देना चाहा है कि भारत अपने पड़ोसी की समृद्धि चाहता है।
तिब्बत में जन्मे काग्यू बौद्ध मत को मानने वाले झाबद्रोंग न्गावांग रिनपोछे भूटानियों के लिए पूजनीय हैं। उन्होंने 1634 में भूटान के एकीकरण में सबसे बड़ी भूमिका अदा की थी। उस समय पांच लामाओं के बीच ऐतिहासिक युद्ध भी हुआ था, जिसमें झाबद्रोंग रिनपोछे सब पर हावी हो गये थे। वर्ष 1651 में झाबद्रोंग रिनपोछे की मृत्यु हो गई। उसके बाद भूटान की अगली पीढ़ी उन्हें पूजने लगी थी। झाबद्रोंग रिनपोछे की छह फीट ऊंची मूर्ति बुक्सा किले की लड़ाई में जीत के बाद ब्रिटिश आर्मी ने हासिल की थी। वर्ष 1864 में ब्रिटिश आर्मी में रहे कैप्टन हिदायत अली ने झाबद्रोंग लामा की कांस्य मूर्ति को कोलकाता स्थित एशियाटिक सोसायटी को उपहार स्वरूप दे दी थी।
भूटान लगातार इस मूर्ति की मांग भारत से करता रहा, जिसे देने से एशियाटिक सोसायटी ने मना कर दिया था। अक्तूबर, 2016 में तत्कालीन संस्कृति मंत्री महेश शर्मा इस मूर्ति को थिंपू, दो साल के वास्ते उधार दे गये थे। पीएम मोदी ने इस बार आश्वासन दिया है कि भूटान अगले पांच वर्षों तक झाबद्रोंग रिनपोछे की मूर्ति को अपने पास रख सकता है। ये सब भावनात्मक टच हैं, जिससे भविष्य में भूटान के मानस को जीतने में भारत कामयाब रह सकता है।
यह दिलचस्प है कि पीएम मोदी की यात्रा से पहले 12-13 अगस्त को अमेरिकी उप विदेशमंत्री जॉन जे. सुलिवन थिंपू की यात्रा पर थे। उस समय अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोंपियो ने ट्वीट के ज़रिये बयान दिया था कि दो दशकों में यह अब तक की सबसे उच्चस्तरीय यात्रा है, जिससे अमेरिका-भूटान के उभयपक्षीय रिश्ते मज़बूत होंगे। भूटान अपने विदेशी मामलों में भारत से सलाह लेने के वास्ते कटिबद्ध है। भारत-भूटान संधि 1949 के खंड दो को देखने के बाद यह बात स्पष्ट हो जाती है। ऐसे में यह सवाल तो बनता है कि क्या इसकी जानकारी भारतीय विदेश मंत्रालय को थी? अमेरिका, भूटान में साइंस-टेक्नोलॉजी, मैथ, आंटेप्रिनियोरशिप के क्षेत्र में सहयोग देने के वास्ते इच्छुक है। एशिया-प्रशांत के बारे में अमेरिका की जो लाइन है, उस पर भूटान की हामी वह चाहता है, ऐसा मीडिया को बताया गया।
मगर, भूटान में अमेरिकी रुचि स्वत: स्फूर्त नहीं है। दशकों से अमेरिका की दृष्टि इस हिमालयी देश पर है। भूटान का सामरिक महत्व सीआईए के लिए इसलिए ज़रूरी हो चला है क्योंकि चीन यहां लगातार अपनी पैठ बनाने की कोशिश में लगा हुआ है। भूटान-अमेरिका के बीच उच्चस्तरीय संपर्क वाइब्रेंट गुजरात के समय जनवरी, 2015 में हुआ था। उस समय के अमेरिकी विदेशमंत्री जॉन केरी अहमदाबाद आये हुए थे, वहीं उनकी वन-टू-वन मुलाक़ात भूटान के तत्कालीन प्रधानमंत्री त्शेरिंग तोबगे से हुई थी। क्या भूटान में अमेरिका कोई 'पॉवरगेम प्लानÓ कर रहा है? इस सवाल को भविष्य पर छोड़ते हैं।
मगर, एक बात तो तय है कि कूटनीतिक संबंध न होने के बावज़ूद, चीन लगातार इस प्रयास में है कि वह भूटान को आईने में उतारे। जब से डोकलाम विवाद प्रारंभ हुआ है, चीन के इस प्रयास में तेज़ी आई है। तिब्बत, सिक्किम और भूटान के त्रिकोण पर स्थित डोकलाम पठार की निगरानी भारत के हाथों में है। वर्ष 1996 में चीन ने भूटान के सामने यह भी चुग्गा फेंका था कि डोकलाम के इस टुकड़े के बदले किसी और ठिकाने पर ज़मीन उससे ले ले। भूटान-चीन के बीच 495 वर्ग किलोमीटर का इलाका विवादित है। 1984 से अब तक चीन और भूटान के बीच सीमा विवाद को लेकर 25 दौर की बातचीत हो चुकी है। वर्ष 2017 में 25वें दौर की बातचीत डोकलाम विवाद की वजह से नहीं हो पायी थी। लेकिन 24 जुलाई, 2018 को चीनी उप विदेशमंत्री खोंग यूएनयू थिंपू एक उच्चस्तरीय शिष्टमंडल के साथ थिंपू आये और डोकलाम समेत सीमा विवाद पर वार्ता की। इस संदर्भ को देखने के बाद, बात समझ में आ जानी चाहिए कि डोकलाम विवाद का विसर्जन नहीं हो गया है।
इस तथ्य को ध्यान में रखना आवश्यक है कि जनवरी से अक्तूबर, 2018 के बीच नयी दिल्ली से चीनी दूतावास के डिप्लोमेट पांच बार थिंपू की यात्रा कर चुके हैं। एक वाकया पहली अगस्त, 2018 को नयी दिल्ली में हुआ। उस दिन चीनी दूतावास में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी की 90वीं वर्षगांठ मनाई जा रही थी। उस मौके पर भूटान के राजदूत वेत्सोप नामग्याल डिनर पर आमंत्रित थे। भूटान के 53 देशों से कूटनीतिक संबंध हैं। चीन उस सूची में नहीं है।
इस समय कूटनीति के केंद्र में 51 साल के भूटानी प्रधानमंत्री डॉ. लोटे छिरिंग हैं, जिन्हें देश का भविष्य तय करना है और अपने चुनावी वादे को भी पूरा करना है। पेशे से यूरोलॉजिस्ट डॉ. लोटे छिरिंग के करिअर का बड़ा हिस्सा बांग्लादेश और ऑस्ट्रेलिया में गुजऱा है। चुनाव के समय देश में सबको स्वास्थ्य का नारा डॉ. लोटे छिरिंग की पार्टी ड्रूक न्यामरूप त्शोंगपा (डीएनटी) ने दिया था। भूटान में स्वास्थ्य सेवा की खस्ताहाली से नाराज़ वोटर बदलाव चाहते थे, यह बात 2017 के आखिर में स्पष्ट हो गई थी। भारत ने भूटान में स्वास्थ्य के क्षेत्र में सहयोग देने का अहद किया है। 11वीं पंचवर्षीय योजना जो 2018 में पूरी हुई थी, उसमें भारत ने 4500 करोड़ की मदद भूटान को की थी।
पिछले साल दिसंबर में भारत ने भूटान की 12वीं पंचवर्षीय योजना के लिए पांच हज़ार करोड़ देना मंजूर किया था। प्रधानमंत्री डॉ. लोटे छिरिंग ने स्वास्थ्य सेवा को 'नेशनल हैपीनेसÓ से संबद्ध किया है। वर्ष 2018 तक भूटान में प्राइवेट क्लिनिक शायद ही किसी ने देखा हो। इस समय शहरी भूटान में प्रत्येक 10 हज़ार की आबादी पर पांच डॉक्टर और 12 नर्सें उपलब्ध करा पा रहा है। डॉ. लोटे इसका विस्तार गांवों तक करना चाहते हैं। 'भूटान इंस्टीच्यूट ऑफ मेडिकल साइंसÓ जल्द बनाना भी उनके लक्ष्यों में से एक है। भूटान दो हज़ार मेगावाट तक बिजली पैदा कर रहा है, जबकि वहां 30 हज़ार मेगावाट जल विद्युत पैदा करने की संभावना है।
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भूटान की खुशहाली के लिए मोदी की यात्रा