दुनिया देखें मगर


विदेश यात्रा को लेकर बढ़ता आकर्षण हमें अपने इर्दगिर्द भी दिख रहा है लेकिन रिजर्व बैंक के ताजा आंकड़ों ने बाकायदा इसकी पुष्टि कर दी है। इन आंकड़ों के मुताबिक इस साल जून महीने में ही देशवासियों ने 59.6 करोड़ डॉलर (करीब 4000 करोड़ रुपये) विदेश यात्रा पर खर्च किए हैं जो पिछले साल इसी महीने किए गए खर्च का तकरीबन डेढ़ गुना है। 
तिमाहियों के हिसाब से देखें तो इस साल की पहली तिमाही (अप्रैल से जून) में विदेश यात्राओं पर देशवासियों का खर्च 159.4 करोड़ डॉलर (करीब 11300 करोड़ रुपये) दर्ज किया गया, जो पिछले साल की इसी अवधि में मात्र 100 करोड़ डॉलर (करीब 7000 करोड़ रुपये) था। वर्ल्ड टूरिज्म ऑर्गनाइजेशन के आंकड़े भी भारतीयों की बढ़ती घुमक्कड़ी पर मोहर लगाते हैं।
इन आंकड़ों के मुताबिक 2017 में विदेश यात्रा पर जाने वाले भारतीयों की संख्या मात्र 2.4 करोड़ थी जो इस साल 5 करोड़ हो जाएगी। अभी सौ-डेढ़ सौ साल पहले तक भारतीय समाज का एक बड़ा हिस्सा समुद्र पार जाने को धर्महानि के रूप में देखता था। ऐसे समाज के लोग आज अगर दुनिया में कहीं भी मौज करते दिख जाते हैं तो अन्य बातों के अलावा इसे भारतीयों के बढ़े हुए आत्मविश्वास का सबूत भी माना जाना चाहिए। बाहर की दुनिया अब हमें पराई और अपनी पहुंच से दूर नहीं लगती। 
इससे आगे गौर करने की बात अगर कुछ है तो यह कि विदेश यात्राओं के इस बढ़ते क्रेज के पीछे सिर्फ दुनिया देखने की मंशा है, या अपने देश के पर्यटन ठिकानों को लेकर उपेक्षा और हिकारत का भाव भी इसमें कोई भूमिका निभा रहा है। विदेश यात्रा हमारे यहां सोशल स्टेटस से जुड़ गई है, इसलिए बहुत संभव है कि देश के अंदर शानदार प्राकृतिक दृश्यों का आनंद लेने के बजाय जैसे-तैसे विदेश हो आने और इस तरह समाज में अपनी नाक ऊंची करने की भावना भी इसके पीछे सक्रिय हो। यह अकारण नहीं है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बार लालकिले से दिए गए अपने ऐतिहासिक भाषण में देशवासियों से देश के अंदर के रमणीक स्थानों में घूमने, वहां बार-बार जाने का आग्रह किया। 
यह याद करना जरूरी है कि रवींद्रनाथ टैगोर से लेकर महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू तक हमारे देश की तमाम विभूतियों ने दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में जाकर उनकी खूबियां देखने और उनसे सीख लेने में कभी कोताही नहीं बरती लेकिन उनकी इस सक्रियता के पीछे कोई आत्महीनता नहीं थी, इसलिए बाहर से सीखे हुए सबक बाद में उन्होंने अपने समाज पर आजमाए और इस क्रम में दुनिया पर अपनी अलग छाप छोड़ी। तात्पर्य यह कि विदेश घूमने हम जरूर जाएं लेकिन हो सके तो इस फिक्र के साथ कि हमारी अपनी जगहें भी दुनिया के देखने लायक कैसे बनें।
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