न शिक्षा, न सुरक्षा


यह व्यवस्था का मजाक ही है कि स्कूलों में पढऩे वाले छात्र-छात्राओं को अपनी प्रतिभा संवर्धन व अध्ययन के बजाय सुरक्षा तथा अनुकूल शैक्षिक सुविधाओं के लिये आंदोलन चलाना पड़े। दो वर्ष पूर्व रेवाड़ी के एक छोटे से गांव की छात्राएं धरने पर बैठी थीं कि उनके स्कूल का उच्चीकरण किया जाये। उनकी शिकायत थी कि उन्हें बड़ी कक्षाओं में पढ़ाई के लिये दूसरे गांव जाना पड़ता है और रास्ते में शोहदे उन्हें छेड़ते हैं और फब्तियां कसते हैं। उन्होंने गांव के स्कूल में बड़ी कक्षाएं चलाने की अनुमति मांगी ताकि उन्हें सुरक्षा-सुकून मिल सके। छात्राओं का आंदोलन सफल हुआ। उसके बाद आंदोलन क्षेत्र के अन्य गांवों तक भी फैला। अब ऐसी ही मांग मानेसर के निकट एक स्कूल की छात्राओं की तरफ से उठी है। लोफरों की छेड़छाड़ से तंग छात्राओं ने पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट से स्कूल के बाहर सुरक्षा की मांग की है। उनका कहना है कि स्कूल आने-जाने के वक्त लफंगे तंग करते हैं। स्कूल में कोई सुरक्षा गार्ड मौजूद नहीं रहता। कैसी विडंबना है कि छात्राओं की जायज मांगों के प्रति शिक्षा विभाग आंखें मूंदे बैठा है। जिन छात्राओं को पठन-पाठन और खेलों से अपनी प्रतिभा को निखारते हुए आगे बढऩा था, वे भय-असुरक्षा में जी रही हैं। ऐसे माहौल में बच्चियों को प्रतिभा निखारने का मौका नहीं मिल रहा है। शिक्षा विभाग के लिये भी यह लानत की बात है कि स्कूली छात्राओं का उनकी प्रशासनिक क्षमताओं से भरोसा ही उठ गया और वे न्यायालय का दरवाजा खटखटाने को मजबूर हुई हैं। वैसे भी राज्य में लगातार बढ़ती यौन हिंसा व अपराध की घटनाओं में निरंतर वृद्धि से असुरक्षा बोध बढ़ रहा है, जिसे शासन-प्रशासन गंभीरता से नहीं ले रहा है।
नि:संदेह जागरूकता बढऩे से नई पीढ़ी के छात्र-छात्राएं स्थिति यथावत बनाये रखने के पक्ष में नहीं हैं। वे शिक्षा के अनुकूल माहौल चाहते हैं। पर्याप्त सुरक्षा चाहते हैं। यही वजह है कि सरकारी स्कूलों में विद्यार्थियों की संख्या में गिरावट देखी जा रही है। मानेसर के गवर्नमेंट गर्ल्स सीनियर स्कूल की छात्राओं की चिंताओं से सहमत हुआ जा सकता है। उन्हें स्कूल आने-जाने के अलावा आउटडोर खेलों के लिये जाने पर लोफरों से असुरक्षा महसूस होती है। असुरक्षा बोध के चलते ही लड़कियां आगे की पढ़ाई के लिये दूर जाने से कतराती हैं और घर बैठना पसंद करती हैं। अपनी गरिमा व सुरक्षा के लिये छात्राओं का अदालत का दरवाजा खटखटाना शिक्षा विभाग के लिये भी शर्म की बात है। छात्राओं का सुरक्षा व सुविधा के लिये संघर्ष करना सरकार व समाज के लिये चिंता का विषय होना चाहिए। पढ़ाई बीच में छूटने से तमाम प्रतिभाएं खिलने से पहले ही मुर्झा जाती हैं। वहीं हरियाणा के ग्रामीण इलाकों में कई स्कूल ऐसे हैं जहां मूलभूत शिक्षा सुविधाओं का नितांत अभाव है। कहीं शिक्षकों की नियुक्ति नहीं है तो कहीं स्कूल का भवन नहीं है और बच्चे गर्मी, सर्दी व बरसात में पेड़ों के नीचे बैठकर पढ़ाई करने को मजबूर हैं। मेवात के मोहम्मद बास स्थित गवर्नमेंट मिडल स्कूल में शिक्षकों के दो पद स्वीकृति के बावजूद दो वर्ष से खाली पड़े हैं। अकेले प्रधानाध्यापक 108 छात्रों को पढ़ाते हैं। यदि उन्हें किसी काम से बाहर जाना होता है तो स्कूल का सफाई कर्मचारी छात्र-छात्राओं की देखभाल करता है। वहीं पिछले दिनों बरसात के मौसम में झज्जर के एक गांव के बच्चे स्कूल भवन के अभाव में पेड़ के नीचे बैठकर पढ़ते नजर आए। स्कूल का भवन दो वर्ष से जर्जर अवस्था में है, मगर आश्वासनों के बावजूद नये भवन का निर्माण नहीं हो रहा है। नि:संदेह, शिक्षा विभाग की लापरवाही से विद्यार्थियों का भविष्य चौपट हो रहा है। यही वजह है कि अभिभावक अपने बच्चों को सरकारी स्कूल से निकालकर निजी स्कूलों में भर्ती कर रहे हैं।
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