आंदोलनकारियों से अशांत हांगकांग का सवाल श्वेत कबूतरों के फडफ़ड़ाते पंख से दब नहीं जाता।

एक अक्तूबर चीन के लिए उतना ही महत्वपूर्ण था, जितना कि भारत के लिए 2 अक्तूबर। कबूतर उड़ाकर वे बता रहे थे कि चीन में कम्युनिस्ट पार्टी के 70 साल शांतिपूर्वक गुजऱे हैं। हमें बताना नहीं पड़ा था कि महात्मा गांधी जयंती के 150 साल पूरी दुनिया के लिए कितना महत्वपूर्ण हैं। 1 अक्तूबर 1949 को इसी थ्येनआन मन चौक पर चेयरमैन माओ ने पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (पीआरसी) की स्थापना की घोषणा की थी। उससे पहले 23 साल तक चले गृहयुद्ध में ख़ून की नदियां बही थीं तो उसके बाद के सात दशक शांतिपूर्ण रूप से गुजऱे हैं
पेइचिंग का ऐतिहासिक थ्येनआनमन चौक चीनी सत्ता की धमक पूरी दुनिया को जताता दिखता है। इसके तीन किलोमीटर की परिधि में माओ की समाधि है, और उसके ठीक सामने है, चीनी संसद। सितंबर 2019 में इसी थ्येनआनमन चौक पर मैं गया था। मैंने जो अपने गिर्द देखा, वो यही कि कई देशों से आये पर्यटक टैंकों से कुचले आंदोलनकारियों के बारे में सवाल करते थे, मगर क्या मज़ाल चीनी गाइड मुंह खोलें। विषय बदलकर वे चीनी राजवंशों के बारे में बताने लगते।
थ्येनआनमन चौक पर 2 जून, 2019 को हज़ारों आंदोलनकारियों को टैंकों से कुचलकर मार डालने की तीसवीं बरसी थी। उस दिन चीनी रक्षा मंत्री वेई फेंग ने कहा कि लोकतंत्रकामियों को कुचल देने की बर्बर कार्रवाई सही थी। थ्येनआनमन चौक पर पांच माह पहले, 2 जून, 2019 को पुलिस का ज़बरदस्त पहरा था। सन्नाटा इतना कि परिंदे तक पर मारते नहीं दिखे। मगर, 1 अक्तूबर 2019 को इसी जगह पर रौनक थी। यहां अभूतपूर्व परेड में देशवासियों के बीच राष्ट्रभक्ति जाग्रत करने के साथ-साथ अंतरमहाद्वीपीय मिसाइल डीएफ-41 का प्रदर्शन कर चीन ने पूरी दुनिया को प्रकंपित किया है। 14-15 हज़ार किलोमीटर तक मार करने वाली 'तोंगफेंग-41Ó मिसाइल आधे घंटे में अमेरिका पहुंचकर उसका सर्वनाश कर सकती है। चीनी शासन ने दावा किया है कि डीएफ-41 प्रक्षेपास्त्र पृथ्वी के किसी छोर तक प्रहार कर सकता है। अर्थात, 70 साल की सबसे बड़ी उपलब्धि शांति के प्रतीक श्वेत कबूतर नहीं थे।
चीनी सत्ता की दूसरी ताक़त है पैसा। 1952 में चीनी अर्थव्यवस्था 9.55 अरब डॉलर की थी। 2018 में चीन 12.66 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था वाला देश बन चुका था। चीनियों को मालूम है कि एक ट्रिलियन में कितने शून्य होते हैं। भारत में उस शून्य को तय करने में सरकार के प्रवक्ता बगलें झांकते हैं। चीन ने विकास की दौड़ से दुनिया को रूबरू कराया है। उसका सबसे बड़ा फॉरेन करेंसी रिज़र्व, हाईस्पीड ट्रेन का संजाल, सिक्थ जेनरेशन वाली आधुनिक अधोसंरचना, आलोचकों को चुप कराने का अवसर देती है। दुनिया के बाज़ार के लिए सस्ते माल तैयार करने वाले चीनी कारखाने, अमेरिका से ट्रेड वार के बावज़ूद ध्वस्त नहीं हुए हैं।
इस समय प्रेसिडेंट शी राष्ट्रवाद के आइवरी टावर पर खड़े हैं। शी जो बोलते हैं, राष्ट्र के लिए नारा बन जाता है। भ्रष्टाचार पर काबू पाना राष्ट्रपति शी के लिए दो वर्षों से मुद्दा बना हुआ है। मगर, उनकी संसद में ही 153 सदस्य खरबपति हैं। 2018 में उनकी आय 650 अरब डॉलर आंकी गई, जो स्विट्जऱलैंड की जीडीपी के आसपास है। स्वयं प्रतिरक्षा मंत्री के पद पर रहते जनरल छांग वानक्वान भ्रष्टाचार में लिप्त पाये गये, उन्हें डिमोट किया गया था। जनरल शू काईहोऊ मिलिट्री कमांड के वाइस चेयरमैन थे। इन्हें भी 2014 में भ्रष्टाचार के आरोप में आजीवन कारावास की सज़ा मिली थी। मार्च 2015 में जनरल शू ब्लड कैंसर की वजह से क़ैद में ही मर गये। राष्ट्रपति शी के नारे के बावजूद सेना के अफसरान, नेता और नौकरशाह भ्रष्टाचार की काली कोठरी से निकल नहीं पाये।
ये तो टॉप लेवल का करप्शन था, नीचे तक यह कितना गया है, उसका नज़ीर गुजऱे शनिवार 29 सितंबर 2019 को पूर्वी चीन के वुक्सी में घटित भयानक बस दुर्घटना है, जिसमें 36 लोग मारे गये, और उतने ही लोग घायल हुए हैं। पता चला कि उस बस मालिक के पास सवारी ढोने के वास्ते लाइसेंस ही नहीं था। भ्रष्टाचार और श्रम क़ानूनों की मिट्टी पलीद देखनी हो तो चीन की फैक्टरियां काफी हैं। चीन में लेबर कोर्ट सवालों के घेरे में रहता है। इंडस्ट्री की वजह से चीन में लेबर लॉ लगातार बदले गये। चीनी फैक्टरियों से निकले माल की प्राइसिंग में भी ज़बरदस्त घोटाला होता है। तो ये है, 70 वर्षों में कम्युनिस्ट शासन की उपलब्धि। जैसे गांधी के फेस वैल्यू को आगे बढ़ाने की विवशता भारतीय संदर्भ में दिखती है, चीन में चेयरमैन माओ का इस्तेमाल सियासी मज़बूरी बन चुका है।
दरअसल, राष्ट्रपति शी की पूरी राजनीति मृगमरीचिका जैसी है। आम जनता के बीच शी महान समाज सुधारक, राष्ट्रवादी, भ्रष्टाचार को जड़ से उखाड़ फेंकने वाले मसीहा हैं। मगर, जब नीतियां तय करने की बारी आती है तो वे कॉरपोरेट कल्चर को आगे बढ़ाते दिखते हैं। यही वो त्रिकोण है, जो उन्हें चाइना-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरीडोर (सीपीईसी) की अवधारणा को आगे बढ़ाने के वास्ते इमरान ख़ान के कऱीब ले जाता है, और उसके दूसरे छोर पर पीएम मोदी से बगलगीर होना उन्हें भाता है। भारत पर दबाव बनाने के वास्ते कभी शी डोकलाम में सैन्य गतिविधियां बढ़ाते हैं तो कभी पाकिस्तानी अतिवादियों को संयुक्त राष्ट्र तक कूटनीतिक सुरक्षा कवच प्रदान करने लगते हैं।
इमरान ख़ान 2 नवंबर 2018 को 'सीपीईसीÓ पर बातचीत के वास्ते पेइचिंग गये थे और इस बार भी 7 अक्तूबर को दो दिनों के वास्ते चीन जा रहे हैं। पाक वज़ीरे आज़म इमरान ख़ान के लिए 'सीपीईसीÓ एकमात्र विषय नहीं होगा, वे कश्मीर पर भी भरपूर प्रलाप करेंगे। इस्लामाबाद के इकऱा यूनिवर्सिटी में कूटनीति व मिलिट्री मामलों के प्रोफेसर इजाज़ हुसैन की टिप्पणी थी, 'इमरान ख़ान का मकसद कश्मीर मामले का अंतरराष्ट्रीयकरण करना है, उसमें वे आगे बढ़ रहे हैं। उसके साथ 'सीपीईसीÓ में स्पेशल इकोनॉमिक ज़ोन बनाकर पाकिस्तान को चीन और सऊदी अरब से विशेष आमदनी हासिल करना एक बड़ा उद्देश्य रहा है।Ó
शी जिनपिंग का चक्रव्यूह समझना सबके लिए आसान नहीं होता। शी 11 से 13 अक्तूबर तक भारत में मेहमान होंगे, उसके बाद उन्हें नेपाल जाना है। भारत आने से पहले पाकिस्तान के पीएम से मिलना और भारत से वापसी में नेपाल जाना कुछ ऐसा संकेत दे रहा है, जो दक्षिण एशिया की कूटनीति में विंची कोड जैसा है। शी के स्वागत के लिए मल्लपुरम का सागर तट सजने लगा है। देखते हैं, पल्लव राजाओं के समय के पुरावशेष प्रेसिडेंट शी को कितना प्रभावित करते हैं!
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