हर शाही पर भारी तानाशाही


राजनीतिक पार्टियां तो कहती ही थी कि हालात इमरजेंसी से भी बुरे हैं, पर अब तो कोर्ट भी कहने लगा है कि हालात इमरजेंसी से भी बुरे हैं। राजनीतिक पार्टियों की तरह ही कोर्ट का भी यही कहना था कि इससे तो वो इमरजेंसी अच्छी थी। कोर्ट और राजनीतिक पार्टियां बात तो एक ही कह रही हैं, पर उनके संदर्भ अलग हैं।
राजनीतिक पार्टियां मोदीजी को तानाशाह ठहराने के लिए यह बात कहती हैं, जबकि कोर्ट ने प्रदूषण को लेकर यह बात कही। कोर्ट का संदर्भ अलग है वरना हमारे यहां इमरजेंसी का मतलब अक्सर तानाशाही ही होता है। पर साहब, तानाशाही तो वह होती है जब आम आदमी सरे बाजार पुलिस से पिटने लगे और कोई कुछ न बोले। यहां तो पुलिस सरेआम पिटती रही वकीलों के हाथों और कोई कुछ नहीं बोला। अब पुलिस का आम लोगों के साथ जो रवैया होता है, उससे क्या उन्हें यह उम्मीद करनी चाहिए कि आम लोग उसके पक्ष में बोलेंगे। उसके लिए तो जैसी पुलिस वैसे वकील।
उसने तो इसे उन दो सांडों की लड़ाई मान लिया, जिसमें नुकसान बेचारी झाडिय़ों का ही होना है। पर खैर, यह अलग मसला है। असली बात यह है कि तानाशाही में पुलिस यूं सरेआम नहीं पिटती। फिर तानाशाही में पुलिस आंदोलन करने के लिए सड़कों पर भी नहीं उतरती। तानाशाही में तो पुलिस आंदोलन करने के लिए सड़क पर उतरने वालों को पीटने, तोडऩे का ही काम करती है। और तानाशाही में क्या किसी की यह हिम्मत होती है कि वह अपने परिवारजनों के पक्ष में आंदोलन करने लगे लेकिन यहां तो पुलिस वालों के परिवारीजन आंदोलन करने पहुंच गए थे।
फिर जब पुलिस पिट रही थी, तब देश के गृहमंत्री भी चुप थे। वे ऐसे ही चुप थे, जैसे जनता चुप थी। जबकि वह जनता नहीं हैं। वे देश के गृहमंत्री हैं। वैसे तो यह माना जाता है कि प्रधानमंत्रीजी की तरह वे भी खूब बोलते हैं। पर जब पुलिस पिट रही थी, तब वे कुछ नहीं बोले। विपक्ष ने उन्हें खूब उकसाया तो भी नहीं बोले। वैसे भी जबसे उन्होंने धारा 370 हटाने वाला बिल पेश किया है, उन्हें दूसरा सरदार पटेल कहा जाने लगा है। दूसरा सरदार पटेल पहले आडवाणीजी को कहा जाता था, फिर मोदीजी को कहा जाने लगा, अब अमित शाह को कहा जाने लगा है। जैसे देवताओं के कई अवतार हैं, वैसे ही सरदार पटेल के भी कई अवतार अवतरित होंगे। कुछ हो गए, कुछ होंगे।
पर सरदार पटेल तो लौहपुरुष थे। लौहपुरुष लोहे की प्रतिमा नहीं होते कि बोल ही न पाएं। पर गृहमंत्री कुछ नहीं बोले। अलबत्ता एक ऐसा फोटो जरूर वायरल हुआ, जिसमें दिल्ली के पुलिस कमिश्नर उनके सामने ऐसी मुद्रा में खड़े हैं जैसे कह रहे हों—हुकुम मेरे आका! पर ऐसे कोई तानाशाही होती है क्या?