शेयर का जोखिम, कर्ज की सुरक्षा


बिना अर्थशास्त्र का ज्ञानी हुए भी कुछ बातें अर्थ-वित्त के बारे में समझी जा सकती हैं। किसी भी कारोबार के आप मालिक हो सकते हैं, आप हिस्सेदार हो सकते हैं। मान लीजिये किसी ने चाय की एक दुकान खोली, घर से पूंजी लगायी, मालिक बना। चाय की दुकान चल निकली। चाय की दुकान की कीमत दो साल में चार गुना हो गयी। इस चार गुना कीमत का मालिक चाय वाला ही होगा। और अगर चाय की दुकान ना चली तो नुकसान भी चाय वाले का ही होगा। चाय की दुकान में दो और पार्टनर आ गये, यानी कुल मिलाकर तीन हिस्सेदार हो गये, तो मुनाफा भी तीन हिस्सों में बंटेगा और अगर चाय की दुकान डूबी तो नुकसान भी तीनों का होगा बराबर-बराबर।
एक सूरत दूसरी भी हो सकती है, जिसमें कोई बाहर वाले दो बंदे आकर बोलें-हमें हिस्सेदारी नहीं चाहिए। आपको कारोबार बढ़ाने को पैसा चाहिए तो हमसे कर्ज ले लो। हमें तो नौ प्रतिशत साल का ब्याज देना और पांच साल बाद हमारा कर्ज वापस कर देना। चाय की दुकान का मुनाफा बीस गुना हो जाये तो भी हमें सिर्फ नौ प्रतिशत का ब्याज देना और अगर चाय की दुकान ना चले, तो भी हमें हर हाल में नौ प्रतिशत का ब्याज चाहिए। अगर ब्याज ना दे पाओ, हमारी रकम वापस ना दे पाओ तो हम तुम्हारी दुकान बेचकर अपनी रकम वसूल लेंगे।
यानी जो लोग कारोबार के लिए कर्ज देते हैं, उनका रिटर्न तय रहता है, उनका ब्याज तय रहता है। कारोबार उछल जाये तो भी उन्हें नौ प्रतिशत ही मिलना या आठ प्रतिशत या जो भी उन्होंने तय किया है। और अगर कारोबार डूब जाये तो उन्हें उनका तय ब्याज मिलना चाहिए। अगर कारोबारी वह देने में समर्थ नहीं है तो कारोबार की संपत्तियां बेच दी जायेंगी और पहले कर्जदारों को उनका कर्ज वापस किया जायेगा। यानी किसी कंपनी के हिस्सेदारों के मुकाबले कर्जदारों का धन अपेक्षाकृत ज्यादा सुरक्षित है। और किसी कर्जदार के मुकाबले कंपनी के हिस्सेदारों यानी शेयरधारकों को रिटर्न ज्यादा संभावित है। पर ज्यादा रिटर्न ज्यादा जोखिम लेकर आते हैं। यानी कंपनी या कारोबार डूबने के साथ उनका पूरा हिस्सा और रकम डूब सकती है।
संक्षेप में किसी कंपनी के शेयरों में रकम लगाने पर ज्यादा जोखिम और ज्यादा रिटर्न की संभावनाएं आती हैं। किसी कंपनी की कर्ज प्रतिभूतियों में रकम लगाने पर कम जोखिम पर कम रिटर्न की संभावनाएं आती हैं। आम तौर पर म्यूचुअल फंड की योजनाएं ऐसी होती हैं, जो या तो सिर्फ कर्ज प्रतिभूतियों में लगाती हैं या सिर्फ शेयर प्रतिभूतियों में। कुछेक स्कीमें ऐसी भी हैं, जो दोनों किस्म की प्रतिभूतियों-कर्ज प्रतिभूतियों और शेयर प्रतिभूतियों में निवेश करती हैं। इस तरह की योजनाओं को बैलेंस्ड योजनाएं या संतुलित योजनाएं भी कहते हैं। यानी इस किस्म की योजनाएं कर्ज और शेयर योजनाओं में एक संतुलन बनाने की कोशिश करती हैं। इस तरह की योजनाओं में निवेश करके निवेशकों को एक तरफ तो शेयर निवेश से हासिल बेहतरीन रिटर्न हासिल हो सकते हैं, दूसरी तरफ कर्ज प्रतिभूतियों की सुरक्षा भी मिल सकती है।
आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल बैलेंस्ड एडवांटेड फंड इस किस्म की योजना के तौर पर चिन्हित किया जा सकता है। इस स्कीम में मौके के हिसाब से शत प्रतिशत रकम शेयर प्रतिभूतियों में लगायी जा सकती है या मौके के हिसाब से अधिकतम 35 प्रतिशत रकम कर्ज प्रतिभूतियों में भी लगायी जा सकती है। यानी इस फंड को नियोजित करने वाले प्रबंधकों के पास यह अधिकार है कि वह अपने आकलन के हिसाब से फंड को शेयर से कर्ज प्रतिभूतियों की तरफ हस्तांतरित कर सकते हैं या कर्ज प्रतिभूतियों से शेयर प्रतिभूतियों की तरफ हस्तांतरित कर सकते हैं।
31 अक्तूबर, 2019 को इस स्कीम के पोर्टफोलियो निवेश का करीब 69 प्रतिशत हिस्सा शेयर प्रतिभूतियों में निवेशित था और करीब 27 प्रतिशत हिस्सा कर्ज प्रतिभूतियों में निवेशित था। 31 अक्तूबर, 2019 को इस फंड के पास 28,287 करोड़ रुपये के संसाधन थे। 19 नवंबर, 2019 के आंकड़ों के हिसाब से इस फंड ने 1 साल के हिसाब से सालाना 11.25 प्रतिशत का रिटर्न दिया। 3 सालों का सालाना रिटर्न 19 नवंबर 2019 को 10.35 प्रतिशत बैठता है। 5 सालों का सालाना रिटर्न 9.03 प्रतिशत बैठता है। दस सालों के आंकड़े बताते हैं कि रिटर्न 12.20 प्रतिशत सालाना रहे। ये रिटर्न बेहतरीन माने जा सकते हैं और सुरक्षित भी क्योंकि इस फंड की रकम शेयर प्रतिभूतियों में निवेशित नहीं है।
यानी निवेशक अपने निवेश योग्य संसाधनों का एक हिस्सा इस स्कीम में भी लगाने पर विचार सकते हैं। पर कुल मिलाकर आंकड़े यह बताते हैं कि रिटर्न अगर कम जोखिम लेकर आ रहे हों तो वह जोखिम लिया जा सकता है।
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