आदिम शैल चित्रों के अस्तित्व पर खतरा!


घोरावल (सोनभद्र)। सोनांचल पर्यटन की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है। यहां आदिम संस्कृति के अवशेष के साथ ही तमाम ऐतिहासिक व धार्मिक स्थल हैं, जो संरक्षण के अभाव में नष्ट होने के कगार पर हैं। यदि इन्हें संरक्षित और सुरक्षित कर दिया जाय तो यह जनपद औद्योगिक के साथ ही पर्यटन की नजर में भी विश्व के मानचित्र पर अपनी पहचान बना सकेगा। 
       मालूम हो कि खुले में बने आदिम शैल चित्रों के नष्ट होने का खतरा मंडरा रहा है। सब कुछ देखते हुए भी जिम्मेदार महकमा इस पर ठोस पहल नहीं कर रहा है। बेलन नदी में आदिम सभ्यता के प्रमाण मिल चुके हैं। जिसके आधार पर उक्त नदी के किनारे आदि मानवों के अस्तित्व की बात प्रकाश में भी आ चुकी है। प्रयागराज जनपद के मेजा तहसील में कोलडीहवां नामक स्थल पर बेलन नदी के किनारे पुरातात्विक खुदाई में प्राप्त सामग्रियों के आधार पर बेलन नदी के आस-पास नवपाषाण काल, पूरा पाषाण काल से आज तक अस्तित्व मानवों का बना हुआ है। प्राप्त तथ्यों की बात करें तो 27000 वर्षों पूर्व आदि मानवों का अस्तित्व बेलन नदी के किनारे हुआ करता था।यह बात पुरातात्विक खोजों में बतायी गयी है कि बेलन नदी के किनारे पुरातात्विक उत्खनन में उच्च पाषाण युग के अवशेष पाए गए हैं। यह अनुमान विद्वानों ने कार्बन डेटिंग के आधार पर लगाई है। फिलहाल विद्वानों की माने तो उसी समय बेलन नदी के किनारे पहाडि़यों में शैल चित्रों को आदिमानवों के द्वारा बनाये गए हैं। 
      खासकर बेलन नदी के प्राकृतिक जलप्रपात मुक्खा पर बने इस तरह के शैल चित्र पर्यटकों को बरबस ही आकर्षित करते हैं। इसी तरह बर्दिया घाटी में भी शैल चित्रों को देखा जा सकता है। बताते हैं कि इनके रंग आज भी वैसे ही हैं जैसे इन्हें उस समय बनाया गया था। प्राकृतिक रंगों से बनाये गए शैल चित्रों पर वर्तमान समय में खतरा उत्पन्न हो गया है। इस संबंध में पर्यटक प्रेमियों का कहना है कि इन पहाड़ी में पाए गए शैल चित्रों को संरक्षित कराये जाने का कार्य किया जाना आवश्यक है, अन्यथा आने वाली पीढि़यों को यह शैल चित्र देखने को नही मिलेंगे।