पहली आदिवासी महिला जयमति, जिन्होंने 8 विषयों पर पीएचडी कर बस्तर को गौरवान्वित किया ० गोंडी भाषा-बोली पर लिख रही हैं व्याकरण

 पहली आदिवासी महिला जयमति, जिन्होंने 8 विषयों पर पीएचडी कर बस्तर को गौरवान्वित किया० गोंडी भाषा-बोली पर लिख रही हैं व्याकरण० सैकड़ों महिलाओं को मानव तस्करी के दलदल से निकाला बाहर
जगदलपुर, 22 दिसंबर (आरएनएस)। बस्तर के धुर नक्सल प्रभावी दंतेवाड़ा जिले के वनग्राम कारली निवासी पहली आदिवासी महिला है डॉ. जयमति कश्यप, जिन्होंने 8 विषयों पर डाक्टरेट की उपाधि हासिल कर बस्तर का मान बढ़ाया है। वे बस्तर की लोक भाषा एवं बोली गोंंडी पर व्याकरण भी लिख रही हैं। बहुमुखी प्रतिभा की धनी जयमति के अपने जीवन में सैकड़ों महिलाओं को मानव तस्करी के घिनौने दलदल से बाहर निकाला है।
वे आदिवासी महिलाओं की अस्मिता की रक्षा के लिए विगत कई सालों से प्राणप्रण से जुटी हुयी हैं। बस्तर में जहां नक्सलवाद रूपी दैत्य अपने खूनी पंजे पसारकर, यहां के बुनियादी विकास में रोड़ा बना हुआ है, वहां जयमति कश्यप जैसी संघर्षशील, जुझारू महिला अंधेरे में प्रकाश की किरण बिखेर कर महिलाओं को निरंतर जागृत कर रही हैं, जयमति बस्तर में महिला सशक्तीकरण की मिसाल हैं।
जयमति कश्यप के सिर से बचपन में ही मां-बाप का साया उठ गया था। बाल्यकाल में उन्होंने गाय चराते हुए गांव के बच्चों को डे्रस में स्कूल में पढ़ते देखा, तो उनके मन में भी शिक्षा ग्रहण करने की ललक जागृत हुयी, कि काश मैं भी शिक्षा ग्रहण कर पाती और उन्होंने दृढ़ निश्चय से अपने सपने को साकार कर लिया। पहले पहल गुमरगुंडा आश्रम में बाद में कल्याण आश्रम में रहकर प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण की।    उन्होंने अपनी काबिलियत और साहस के बल पर न केवल स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त की, बल्कि इतिहास, हिंदी, राजनीति, समाज शास्त्र, ग्रामीण जनजीवन, भूगोल एवं लोक प्रशासन जैसे 08 विषयों पर पीएचडी कर एक सर्वोच्च मुकाम हासिल कर लिया। वर्तमान में कोंडागांव जिले में महिला बाल विकास सुपरवाईजर के पद सेवारत जयमति कश्यप का मानना है कि यदि व्यक्ति लगन एवं निष्ठा से परिश्रम करे तो जीवन में कभी असफल नहीं होगा।
जयमति कश्यप कहती हैं कि अब तो मैंने किताबों को ही अपना जीवन साथी बना लिया है और अपनी विलुप्त हो रही बोली-भाषा गोंडी के संरक्षण-संवद्र्धन के लिए सतत् कार्य कर रही हूं। जब तक सांस है तब तक आदिवासी समाज की सभ्यता व संस्कृति को बचाने का पुरजोर प्रयास करती रहूंगी। उन्होंने कहा कि बस्तर के आदिवासी समाज की व्यवस्थाएं परगनाओं पर संचालित होती है, इसीलिए मैंने बस्तर के परगनाओं पर गहन शोध किया है, जिसमें आदिवासी समाज की जीवन शैली के अतिरिक्त लोकनृत्यों एवं लोक गीतों की विस्तृत मीमांसा है। उन्होंने बताया कि मुझे कई दफा नक्सलियों ने बुलाया और नक्सलवाद अपनाने का दबाव डाला, किंतु मैंने उनके आदेश को ठुकरा दिया. उनका मानना है कि बस्तर में अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिए नक्सलियों ने आदिवासी जनजीवन में अनावश्यक दखलंदाजी, विघ्र बाधाएं डालकर उनके समग्र विकास और कल्याण की राह में रोड़ा खड़ा कर दिया है।
राकेश पांडे