सुस्ती का सामना


देश के विकास की रफ्तार में लगातार आ रही कमी चिंता का विषय है। शुक्रवार को जारी आंकड़ों के मुताबिक जुलाई-सितंबर, 2019 की तिमाही के दौरान सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि की दर 4.5 प्रतिशत दर्ज की गई है। यह लगातार छठी तिमाही है, जब जीडीपी के बढऩे की दर में गिरावट आई है। गौरतलब है कि जीडीपी किसी खास अवधि के दौरान वस्तु और सेवाओं के उत्पादन की कुल कीमत है। भारत में कृषि, उद्योग और सर्विसेज तीन प्रमुख घटक हैं जिनमें उत्पादन बढऩे या घटने के औसत के आधार पर जीडीपी दर तय होती है। पिछले कुछ समय से इन तीनों ही क्षेत्रों में भारी सुस्ती दिख रही है। इंडस्ट्री की ग्रोथ रेट 6.7 फीसदी से गिरकर सिर्फ आधा प्रतिशत रह गई है।
मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर का तो बुरा हाल है जिसमें बढ़ोत्तरी की जगह आधे प्रतिशत की गिरावट दर्ज हुई है। कृषि क्षेत्र में वृद्धि की दर 4.9 से गिरकर 2.1 फीसदी और सर्विसेज की दर भी 7.3 फीसदी से गिरकर 6.8 ही रह गई है। मुश्किल यह है कि आम उपभोक्ताओं ने हाथ बांध रखे हैं। लोग सामान नहीं खरीद रहे हैं, वे अपने रोजमर्रा के खर्च में कटौती कर रहे हैं और ज्यादा से ज्यादा बचाने की कोशिश कर रहे हैं। इससे मांग पैदा हो नहीं रही है। कारोबारी दुविधा में हैं। कंपनियों को अपना प्रॉडक्शन कम करना पड़ रहा है। उनमें से कई अपने कर्मचारियों की छंटनी करने को मजबूर हो रही हैं।
दरअसल बड़े पैमाने पर रोजगार पैदा न होने, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्लोडाउन की खबरें आने, आवास प्रॉजेक्ट फंसने, पब्लिक सेक्टर की कई कंपनियों व बैंकों के संकट में पडऩे और कई वस्तुओं की बढ़ती महंगाई ने लोगों को आशंकाओं से भर दिया है। वे खरीदारी और निवेश से कतरा रहे हैं। हालांकि कई विशेषज्ञ मानते हैं कि अगली तिमाही से हालात सुधर सकते हैं। सरकार ने अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए पिछले दिनों जो उपाय किए हैं, उनका असर अगली तिमाही से दिखना शुरू हो जाएगा। गौरतलब है कि सरकार ने विदेशी निवेशकों से सरचार्ज हटाया और कॉर्पोरेट टैक्स में कटौती की। ऑटो सेक्टर की बेहतरी के लिए घोषणाएं की गईं, संकटग्रस्त रीयल एस्टेट और नॉन बैंकिंग फाइनैंशल कंपनियों के लिए भी कदम उठाए गए। इन सबसे बाजार में सुधार की आशा है।
संभव है, बाजार में डिमांड बढ़ाने के लिए रिजर्व बैंक अगले हफ्ते फिर ब्याज दरें घटाए। मगर इन सबके साथ-साथ सरकार को जॉब मार्केट पर विशेष ध्यान देना चाहिए। अगर लोगों को बड़े पैमाने पर नौकरी मिलनी शुरू हुई तो इससे आम उपभोक्ताओं में विश्वास और उत्साह पैदा होगा। सरकार वक्त की नजाकत समझे। अर्थव्यवस्था में नई जान फूंकने के लिए वह दलीय भेदभाव भुलाकर सबको साथ ले और कुछ ठोस व कारगर फैसले करे। विपक्ष के लिए भी यह जिम्मेदारी दिखाने का मौका है। सरकार की आलोचना उसका अधिकार है, लेकिन सही मौके पर थोड़ी सकारात्मकता राष्ट्र का संबल बन जाती है।