भारतवंशी की बंसी से मंत्रमुग्ध आयरलैंडरुण नैथानीअपनी जड़ों से उखडऩा, अपनी नई जमीन तलाशना और फिर इतनी मजबूती से खड़ा होना कि पूरा देश उन्हें स्वीकार कर ले ?और देश की बागडोर उसके हाथ में सौंप दे, यह वाकई करिश्मा ही कहा जायेगा। यह करिश्मा जब कोई भारतीय करे तो गर्व महसूस होना स्वाभाविक ही है। भारतवंशी लीयो वराडकर ने यह करिश्मा छोटे व समृद्ध यूरोपीय देश आयरलैंड में दोहराया। महाराष्ट्र में मुंबई से करीब पांच सौ किलोमीटर दूर मालवन तहसील के वराड गांव से लीयो वराडकर के पिता अशोक वराडकर साठ के दशक में लंदन गये थे और कालांतर में आयरलैंड जा बसे।
पिछले दिनों लीयो वराडकर अपनी निजी यात्रा पर भारत आये। उनके साथ पिता, बहनें व उनके पति, बच्चे तथा परिवार के लोग साथ थे। गांव वालों ने उन्हें पलक-पावड़ों पर बिठाकर जोरदार स्वागत किया। वे गांव के लोगों से मिले और मंदिर भी गये। उन्होंने यह मेरे जीवन का खास पल है और कहा कि यह उनकी निजी यात्रा है, अगली बार जब वे सरकारी यात्रा पर आएंगे तो गांव जरूर आएंगे।
अंतर्राष्ट्रीय छवि वाले युवा तुर्क लीयो वराडकर यूं तो पिता की तरह डॉक्टर ही बने, मगर सामाजिक जीवन में सक्रियता उन्हें राजनीति में खींच लायी। वे सिर्फ 24 साल की ही उम्र में काउंसलर बन गये थे। वराडकर का जन्म 18 जनवरी, 1979 को डबलिन में हुआ था। उनके पिता मुंबई से आए डॉक्टर थे। जो साठ के दशक में इंग्लैंड पहुंचे थे। उन्होंने एक आइरिश नर्स मरियम से शादी की थी। यह परिवार सत्तर के दशक में आयरलैंड बस गया। वे अपने परिवार के सबसे छोटे बेटे हैं।
भारतवंशी की बंसी से मंत्रमुग्ध आयरलैंड