किसान को उसकी फसल का वाजिब मेहनताना दिलाने के लिये मंडियों में सीधी उपज बेचने की अनुमति देना नि:संदेह हरियाणा सरकार की सार्थक पहल ही कही जायेगी। हालांकि, अभी पहले चरण की योजना में फल-सब्जी उत्पादक किसान ही शामिल होंगे, लेकिन कालांतर कृषि विभाग की इस प्रस्तावित योजना में सभी अनाजों की बिक्री आढ़तियों की दखल के बिना किसान सीधे मंडियों में कर पायेंगे। यह विडंबना ही है कि आजादी के सात दशक बाद भी किसान को उसकी उपज का न्यायसंगत दाम नहीं मिल पा रहा है। कैसी विसंगति है कि किसान खून-पसीना बहाकर उपज पैदा करता है और उसकी मेहनत व लागत का मूल्य कोई और तय करता है। अनाज की कीमत तय करने में भी न्याय का पलड़ा हमेशा बिचौलिये के पक्ष में ही झुका रहता है। विडंबना देखिये कि मौसम की मार या अन्य कारणों से फसल खराब होती है तो उसकी कीमत भी किसान को चुकानी पड़ती है। यदि फसल भरपूर हो तो सब्जी, फल या अनाज की आपूर्ति बढऩे से उपज के दाम गिरा दिये जाते हैं। तो बाजार में फसल कम होने से जो खाद्य पदार्थों के दाम आसमान छूने लगते हैं, उसका मुनाफा किसकी जेब में जाता है सही मायनो में बिचौलिये एक ऐसी परजीवी जमात के रूप में पूरे देश में फल-फूल रहे हैं, जो निरंतर संपन्न होते गये और किसान के हिस्से में सिर्फ बदहाली ही आई। पिछले दिनों हरियाणा सरकार ने मंडियों में किसानों की उपज खरीद ऑनलाइन करके मुनाफा सीधे किसानों के खाते में भेजने की कोशिश की थी, मगर आढ़तियों के विरोध के कारण यह योजना सिरे नहीं चढ़ सकी। सरकार यदि अपने फैसले पर दृढ़ रहे और किसान की उपज को सीधे मंडियों में बेचने की अवरोध रहित व्यवस्था कर दी जाये तो किसान को वास्तव में उपज का न्यायसंगत दाम मिल सकेगा।
नि:संदेह हरियाणा सरकार की प्रदेश की मंडियों में किसानों को सीधे उत्पाद बेचने की योजना रचनात्मक पहल है। इसमें किसानों को आढ़तियों की तरह मार्केटिंग बोर्ड से लाइसेंस लेने की भी आवश्यकता भी नहीं होगी। निश्चय ही इस प्रयास से सरकार द्वारा परंपरागत फसलों के स्थान पर फसलों के विविधीकरण की योजना को भी सिरे चढ़ाने में बल मिलेगा। दरअसल, गैर परंपरागत फसल को उपभोक्ता तक पहुंचाने में किसान को खासी दिक्कत का सामना करना पड़ता है। यही वजह है कि वह फसलों के विविधीकरण से कतराता रहा है। वहीं जो किसान जैविक खेती करते हैं और बाजार में उसकी बढ़ी कीमत चाहते हैं, उन्हें भी राज्य सरकार की मंडियों में सीधे उत्पाद बेचने की योजना से फायदा होगा। वे वाजिब दामों पर फसल बेचकर अपना जीवन स्तर सुधार सकते हैं। सही मायनो में इससे किसानों की आय बढ़ाने की सरकार की योजना को सकारात्मक प्रतिसाद मिलेगा। इसी क्रम में कुछ गांवों को जोड़कर 'ग्राम हाटÓ बनाने की कृषि विभाग की योजना भी एक अभिनव पहल होगी। इस योजना में शामिल किसानों को हरियाणा मार्केटिंग बोर्ड 'फार्मर प्रोड्यूज आर्गेनाइजेशनÓ यानी एफपीओ का नाम दे रहा है। इसके माध्यम से किसान बिचौलियों के दबाव से मुक्त होकर खुद अपने उत्पाद बाजार में बेचने के लिये ला सकेंगे। नि:संदेह यह योजना जहां किसान को स्वावलंबी बनायेगी, वहीं कमीशनखोरी से मुक्त होकर किसान की आय में वृद्धि हो सकेगी। अब तक राज्य में करीब 450 एफपीओ का सक्रिय होना बताता है कि किसान इस योजना से उत्साहित व प्रोत्साहित हैं। सरकार को चाहिए कि ऐसे किसानों को खाद्यान्न बेचने के लिये पर्याप्त जगह बिना जटिल प्रक्रिया के उपलब्ध कराये। इसके अलावा ऐसे किसानों को प्रोत्साहित करने के लिये रचनात्मक पहल करे। इस योजना का सीधा लाभ यह होगा कि उपभोक्ता भी ताजी सब्जी व फल उचित दाम में हासिल कर सकेंगे। सरकार को राज्य में कृषि उपज के भंडारण व शीतगृह की शृखंला को भी बढ़ावा देना चाहिए।
बिचौलियों पर नकेल