दिल्ली का दांवदिल्ली विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है। 8 फरवरी को यहां वोट डाले जाएंगे और 11 फरवरी को नतीजे आएंगे। पिछले दो विधानसभा चुनाव यहां आम आदमी पार्टी के पक्ष में एकतरफा या उसके और बीजेपी के बीच आमने-सामने के रहे हैं। इस बार कांग्रेस मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने की कोशिश कर सकती है। सीएम अरविंद केजरीवाल के उभार के साथ दिल्ली की सियासत में अपेक्षाकृत युवा नेताओं का दबदबा बढ़ गया है। यहां की राजनीति पर प्रभाव रखने वाले पुराने नेताओं में मदन लाल खुराना, साहिब सिंह वर्मा, शीला दीक्षित, सुषमा स्वराज और अरुण जेटली, मोटे तौर पर कहें तो लगभग सारे ही जा चुके हैं। आम आदमी पार्टी में तकरीबन सारे युवा हैं।
कांग्रेस में अजय माकन के अध्यक्ष पद छोडऩे के बाद सुभाष चोपड़ा ने कमान संभाली है। बीजेपी से कांग्रेस में पहुंचे कीर्ति आजाद की भूमिका भी अहम हो सकती है। बीजेपी में डॉ. हर्षवर्धन और विजय गोयल सीनियर हैं, लेकिन कमान युवा पूर्वांचली नेता मनोज तिवारी के हाथ में है। केंद्रीय मंत्री हरदीप पुरी की सक्रियता को भी गौर से देखा जा रहा है, जो दिल्ली की राजनीति में नए हैं। राज्यों के चुनाव में राष्ट्रीय महत्व के विषयों को ज्यादा तवज्जो नहीं मिलती पर भारतीय राजनीति का केंद्र होने के कारण इन मुद्दों का असर यहां जरूर होगा। इस चुनाव में सीएए को लेकर जारी बहस और जामिया मिलिया व जेएनयू में हुई हिंसा की छाया पडऩे की संभावना है।
आम आदमी पार्टी केजरीवाल सरकार के कामों के आधार पर वोट मांगने जा रही है, जिसे लेकर वह काफी आश्वस्त है। बीजेपी की दुविधा यह है कि पिछले कुछ असेंबली चुनावों में मोदी मैजिक नहीं चल पाया है। ऐसे में केजरीवाल सरकार के कार्यों में खोट दिखाकर वह बेहतर गवर्नेंस का दावा भी कर रही है। मुश्किल यह है कि उसके पास सुशासन का कोई ताजा मॉडल नहीं है। कांग्रेस को आम आदमी पार्टी के हाथों खोई अपनी जमीन वापस पानी है। 2015 में आम आदमी पार्टी को रेकॉर्ड 54.34 फीसदी वोट मिले थे, जिनमें ज्यादातर कांग्रेस के थे। अगर बीजेपी को देखें तो उसके वोट कमोबेश ज्यों के त्यों रहे हैं।
2013 के चुनाव में उसने 31 सीटें जीती थीं और वोट मिले थे 33.07 फीसदी, जबकि 2015 में उसकी सीटें घटकर सिर्फ 3 रह गईं लेकिन वोट परसेंट 32.19 रहा। पिछले लोकसभा चुनाव में जिस तरह कांग्रेस ने अपना वोट शेयर सुधारा, वह आम आदमी पार्टी के लिए चिंता का विषय है। 2014 में कांग्रेस को केवल 15 पर्सेंट वोट मिले थे जबकि 2019 में उसका वोट शेयर 22.5 फीसदी पर आ गया। यह ट्रेंड जारी रहा तो आम आदमी पार्टी के लिए समस्या हो सकती है, हालांकि लोकसभा और विधानसभा चुनाव का ट्रेंड एक सा नहीं होता। 2019 में 'आपÓ 18 प्रतिशत पर जबकि बीजेपी 57 पर्सेंट पर पहुंच गई। देखें, दिल्ली का वोटर किस मिजाज से वोट देता है।
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