बजट विश्लेषण की मांग को लेकर दलित अधिकार मंच की बैठक

उरई।(आरएनएस ) एक फरवरी को देश का बजट वर्ष 2020-21 संसद में वित्त मंत्री द्वारा पेश किया गया, एक ओर वह अपना सबसे बड़ा बजट बता रहे है लेकिन इस बजट में दलितों, आदिवासियों के लिए क्या है इसको लेकर दलित बजट समीक्षा व अनुसूचित जाति जनजाति उपयोजना आवंटन एक अवलोकन व बजट विश्लेषण की मांग को लेकर बुंदेलखंड दलित अधिकार मंच, दलित आर्थिक अधिकार आन्दोलन, एन.सी.दी.एच.आर. द्वारा बी.डी.ए.एम. ऑफिस बघौरा मे बैठक आयोजित की गई।
देश के बजट वर्ष 2020-21 के विश्लेषण को एस.सी.पी. टी.एस.पी. के विशेष सन्दर्भ रखते हुए बुंदेलखंड दलित अधिकार मंच बहुजन फाउंडेशन के संयोजक संस्थापक कुलदीप कुमार बौद्ध ने कहा कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने देश का जो बजट पेश किया है, उसमे हर साल की तरह इस बार भी बहुत कम दिया है टोटल सेंटर सेक्टर स्कीम में 898430 करोड़ रु के सापेक्ष 83257 करोड़ रुपये ही दिया गया है जो कि पिछली गाइड लाइन के सापेक्ष 139172 करोड़ रूपये कम दिया गया है, जो 83257 करोड़ रूपये दिया गया है उसमे भी टारगेटिट स्कीम में मात्र 16174 करोड़ व नॉन टारगेटिट स्कीम में 67083 करोड़ रुपये आवंटित किये गए है कुल मिलकर 55915 करोड़ रुपये कम दिये गए अर्थात गैप है वही के लिए टोटल सेंटर सेक्टर स्कीम में 895043 करोड़ रु के सापेक्ष 53653 करोड़ रुपये ही दिया गया है जो की पिछली गाइड लाइन के सापेक्ष 77034 करोड़ रूपये कम दिया गया है, जो 53653 करोड़ रूपये दिया गया है उसमे भी टारगेटिट स्कीम में मात्र 19428 करोड़ व नॉन टारगेटिट स्कीम में 34225 करोड़ रुपये आवंटित किये गए है कुल मिलकर 23381 करोड़ रुपये कम दिये गए अर्थात गैप है? जो की पुरे तरह से दलितों व आदिवासियों को निराश करता है। दलित अधिकार आन्दोलन व बुंदेलखंड दलित अधिकार मंच की टीम ने यह प्राथमिक स्तर पर बजट का विश्लेषण किया है अभी विस्तृत विश्लेषण कर रणनीति बनायीं जाएगी वही अगर हम स्कीम बार बजट को देखते है तो दलित युवाओं के लिए कोई खास पढाई व रोजगार को लेकर बजट का आवंटन नहीं, जबकि पिछली गाइड लाइन के अनुसार सीधे दलितों व आदिवासियों को डायरेक्ट लाभान्वित करने बाली स्कीम में बजट आवंटन किया जाना चाहिए जो की नहीं हुआ है। बजट 2020-21 पर टिप्पणी करते हुए मंच के साथी दीपा व संजय वाल्मीकि ने कहा की सरकार महिलाओं के लिए बड़े बड़े बादे करती है लेकिन बजट में दलित महिलाओं के लिए कुछ भी नहीं है आज में हमारी दलित वाल्मीकि महिलाये मैला ढो कर अपने बच्चो का पेट भर परिवार का गुजर बसर करती है वही मैला ढ़ोने बाली महिलाओं के लिए बहुत कम बजट दिया गया है। स्टूडेंट लीडर- नंदकुमार, पंचम, अर्सना मंसूरी ने कहा की  दलित स्टूडेंट को समय से स्कालरशिप नहीं मिलती वही बुंदेलखंड से कई हजार दलित युवा रोजगार की तलाश में पलायन करके दुसरे प्रदेशों में जाते है, आखिर कब सुधरेगी दलितों की हालात जिस प्रकार से बजट की कटोती की जा रही है वो सामाजिक से ज्यादा आर्थिक अत्याचार दलितों के साथ किया जा रहा है जिस पर सबकी चुप्पी बनी हुई है, अब हम सबको मिलकर इस आर्थिक अत्याचार के खिलाफ बड़े पैमाने पर आन्दोलन करना होगा।