हमीरपुर।(आरएनएस ) बुन्देलखण्ड मंे बेतवा नदी के किनारे सरीला तहसील का जलालपुर गांव जिसे बुन्देलखण्ड की कासी का खिताब मिला है। क्योकि यहां 108 शिवमंदिर बनाये गये थे। गुजरे जमाने में जब सड़के अच्छी नही थी तब जलमार्ग से व्यापार और आवागमन अधिक होता था। इसीलिए भोपाल से शुरू होकर हमीरपुर तक बेतवा नदी के जरियें लोग आते जाते थे और यही यमुना नदी में मिलकर प्रयागराज में गंगा से मिलकर बनारस और गंगासागर तक लम्बा जलमार्ग काम करता था। जलालपुर में बने बेतवा नदी के किनारे के घाट और शिवमंदिर अपनी कहानी खुद कहते है। यहां बने 108 शिवमंदिरो में सबसे बड़ा शिवमंदिर जिसमंे शिवरात्रि को बड़ी संख्या मंे श्रद्धालु जलाभिषेक करने जाते है। यह लोगो के आस्था का केन्द्र तो है ही पर्यटन स्थल भी बना बेहद खूबसूरत दिखने वाले इस मंदिर का निर्माण तब हुआ जब आवागमन के लिए मार्ग ठीक ठाक नही होते थे। बरसात के दिनो मे तो यहां निकलना ही मुश्किल था। जलमार्ग से व्यापारिक सामग्री की आपूर्ति के लिए बड़ी बड़ी नावंे बड़े पर्दे लगाकर चलायी जाती थी। जिन्हे बजरा कहते थे। जलमार्ग से गुजरने वाले तमाम सेठो मे से किसी की नजर यहां पडी और उसने शिव मंदिर का निर्माण करा दिया। मगर उसने अपनी पहचान के लिए मंदिर में कहीं कोई पत्थर नही लगवाया। बाद मंे यहां शिवमंदिर बनते गये जिनकी संख्या 108 पहंुंच गयी। यहां सावन के महीने में और शिवरात्रि मंे बहुत दूर दूर से लोग कामर लेकर जल चढाने आते है। बीते जमाने का शहर जलालपुर जिसे तमाम लोग रहस्यों की नगरी भी कहते है। कोई इसे अमीरो का शहर, दफीनों का शहर बताता है जो अब खंडहर मंे तबदील होते जा रहे है। इस रहस्यमय नगरी को पर्यटन के नक्शे पर लाने, ऐतिहासिक नगरी को बचाने की जिम्मेदारी जन प्रतिनिधियों की बनती है। ताकि आने वाली पीढ़ी इसे इतिहास में नही बल्कि अपनी नजरों से देख सके कि भूत कितना वैभवशाली था।
बेतवा नदी के किनारे बने शिवमंदिर व घाट