एक काजी से सहमे 'राजकाजी

 


 


 


 


 


 



पाकिस्तान की न्यायिक व्यवस्था से जुड़े किस्से अक्सर सुर्खियों में रहे हैं। गाहे-बगाहे सत्ता और पर्दे के पीछे से पाक को हांकने वाले सत्ता-प्रतिष्ठानों का अदृश्य हाथ न्यायिक व्यवस्था में गहरी दखल रखता है। पिछले दिनों पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की पुत्री मरियम नवाज ने उस न्यायाधीश का वीडियो जारी किया, जिसने शरीफ को सजा सुनाई थी। आरोप है कि ब्लैकमेलिंग और दबाव में जज ने नवाज शरीफ की गिरफ्तारी का फैसला सुनाया। फिलहाल पाकिस्तान के एक बहुचर्चित जज जस्टिस काजी फाएज ईसा सत्ता प्रतिष्ठानों व सेना की आंखों में खटक रहे हैं। उन्हें गिरफ्त में लेने का जाल बुना जा चुका है। उनकी विदेशों में कथित संपत्ति को आधार बनाया गया है।
जस्टिस काजी कुछ समय पहले सुर्खियों में आये थे जब उन्होंने सेना व राजनीति के अपवित्र गठबंधन पर सवाल खड़े किये थे। उनका कहना था कि सेना के अधिकारी नौकरी हासिल करते समय शपथ लेते हैं कि वे सेना में रहते हुए किसी राजनीतिक दल का हिस्सा नहीं बनेंगे। उन्होंने सेना प्रमुख से सैन्य अधिकारियों के विरुद्ध कार्रवाई करने को कहा । फिर तल्ख प्रतिक्रियाएं सामने आईं।
वैसे तो पाक में मुखर न्यायप्रिय जजों के विवादों में घिरने-घेरने का लंबा इतिहास रहा है। यह विवाद सुप्रीमकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश चौधरी इफ्तिखार से लेकर न्यायमूर्ति काजी ईसा तक जारी है। काजी तब सुर्खियों में आए जब उन्होंने सेना की राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को उजागर किया। काजी ने सेवा शर्तों में राजनीति में सक्रिय न होने की शपथ लेने वाले सैन्य अधिकारियों के खिलाफ रक्षा मंत्रालय व सेना को कार्रवाई के आदेश दिये। इतना ही नहीं, उन्होंने दो सदस्यीय सुप्रीमकोर्ट की बेंच की अध्यक्षता करते हुए न केवल सेना बल्कि पाक की निरंकुश खुफिया एजेंसी आईएसआई को भी आड़े हाथों लिया। उन्होंने सरकार, खुफिया एजेंसी व चुनाव आयोग की कार्यशैली पर सवाल खड़े किये।
इससे पहले भी वर्ष 2017 में जब नवाज शरीफ सरकार को हिलाने के लिये तहरीक-ए-लबाइक पाकिस्तान यानी टीएलपी ने बड़ा आंदोलन किया था तो इस बाबत दिये काजी के फैसले से सेना खासी नाराज हुई थी। दरअसल, आंदोलन नियंत्रण से बाहर हो गया था। राष्ट्रीय राजमार्ग अवरुद्ध कर दिये गये थे और हिंसा के बाद दंगे भड़क गये थे।
पाक सुप्रीमकोर्ट द्वारा स्वत: संज्ञान लेकर सुनवाई करने के मामले में काजी चर्चाओं में रहे हैं। उन्होंने राजनेताओं व चरमपंथियों के मेलजोल पर भी सवाल खड़े किये। खासकर संघीय आंतरिक मंत्री चौधरी निसार की कुछ चरमपंथी संगठनों के मुखियाओं से मुलाकात को लेकर। क्वेटा बम धमाके की जांच के लिये गठित आयोग की अध्यक्षता करते हुए काजी ने सुरक्षा एजेंसियों की कार्यशैली पर प्रश्नचिन्ह लगाये। उन्होंने आतंकवाद निरोधक कानून का पालन करने के निर्देश देते हुए अतिवादी संगठनों पर प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की थी। वहीं उन्होंने पाक में फौजी अदालतों की स्थापना का मुखर विरोध किया था।
क्वेटा में 26 अक्तूबर 1959 को जन्मे काजी ईसा एक बहुआयामी प्रतिभा के धनी व्यक्ति हैं। पाकिस्तान में प्राथमिक व कालेज शिक्षा ग्रहण करने के बाद वे कानून की शिक्षा हासिल करने ब्रिटेन चले गये। शिक्षा हासिल करने के बाद उन्होंने बलूचिस्तान उच्च न्यायालय में बतौर वकील अपनी कैरियर की शुरुआत की। कुछ लॉ फॉर्म के साथ जुड़े। काजी ने सिंध हाईकोर्ट, बलूचिस्तान हाईकोर्ट व सुप्रीमकोर्ट में भूमिका निभाई, मगर बार काउंसिल की राजनीति से दूर ही रहे। वे जनहित से जुड़े मुद्दों के मुखर प्रवक्ता रहे हैं। उन्होंने कई जनहित याचिकाएं दायर कीं। इससे पहले वे पाकिस्तान के  अंग्रेजी अखबारों में पर्यावरण, बैंकिंग व सिविल कानून के बारे में अधिकारपूर्वक लिखते रहे हैं।
दरअसल, विवादों व काजी ईसा का चोली दामन का साथ रहा है। जब वे बलूचिस्तान हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बने तो उनके खिलाफ सुप्रीमकोर्ट में बलूचिस्तान नेशनल पार्टी ने संवैधानिक प्रत्यावेदन दायर किया। काजी बलूचिस्तान के प्रतिष्ठित परिवार के सदस्य हैं। कभी कंधार से बलूचिस्तान आकर बसे इनके दादा कलात रियासत के प्रधानमंत्री रहे हैं। वहीं पिता मोहम्मद ईसा तहरीक-ए- पाकिस्तान के कद्दावर नेता माने जाते थे।
बहरहाल, अब काजी ईसा के खिलाफ कार्रवाई की कोशिश शुरू हुई है। पाक की सुप्रीम ज्यूडिशियल काउंसिल जस्टिस काजी के खिलाफ सुनवाई कर रही है। उन पर आरोप है कि उन्होंने अपनी बीवी व बच्चों के नाम ब्रिटेन में तीन संपत्तियां खरीद रखी हैं। आरोप यह भी है कि इसका उल्लेख उन्होंने अपने शपथ ग्रहण में नहीं किया है। लेकिन उनके समर्थन में उठ खड़े होने वाले भी कम नहीं हैं। गत दो जुलाई को जब उनके मुद्दे पर सुनवाई की जा रही थी तो पाकिस्तान बार एसोसिएशन ने  इस दिन को काले दिन के तौर पर मनाने का फैसला किया था।
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