नौकरशाही : चरित्र बदलने की पहल

 


 


 


 


 




प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और नौकरशाहों के संबंध पर काफी शोध हो रहे हैं। शपथ लेने के साथ वे नौकरशाहों के साथ बैठकें कर रहे हैं। यह क्रम जारी है। 
नरेन्द्र मोदी ने अपने पहले कार्यकाल की शुरु आत में भी सचिवों से मुलाकात कर उनको विश्वास में लेने तथा भारत के बारे में अपना विजन स्पष्ट करने के साथ उन सबको निर्भय होकर जनकल्याण के कार्य करने की अपील की थी। वह भारत के नए प्रधानमंत्री का नौकरशाही को दिया गया संदेश था कि हम सरकारी तंत्र की कार्यप्रणाली बदलना चाहते हैं, हमें जनादेश बदलाव के लिए मिला है और आपके साथ के बगैर संभव नहीं होगा। राजनीतिक नेतृत्व की ओर से यह बड़ा बदलाव है। यह सच भी है। वर्तमान शासकीय ढांचे में यदि अधिकारी सरकार की सोच को कार्यरूप देने में ईमानदारी और तेजी न बरतें तो काम नहीं होगा और सरकार से जनता नाराज हो जाएगी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की कार्यशैली में गुजरात से ही योग्य, सक्षम एवं ईमानदार अधिकारियों के साथ टीम के चरित्र में काम करना रहा है। इसके परिणाम उनको मिलते रहे हैं। केन्द्र में आने के बाद उन्होंने उस सूत्र को अपनाया। गुजरात में भी वे कहते थे कि आप निर्भीक होकर निर्णय लें। यदि अच्छे इरादे से लिए गए निर्णय में गलतियां होती हैं तो उसकी जिम्मेवारी मैं अपने सिर लूंगा। इससे अफसर निर्भय होकर काम करते थे।
केन्द्र में भी उन्होंने योग्य और ईमानदार नौकरशाहों को यही निर्भयता प्रदान की। उन्होंने कहा कि आप सब अपने को प्रधानमंत्री समझें और निर्भीक होकर काम करे, कोई मौलिक भूल होती है तो वह आपकी जिम्मेवारी नहीं होगी। भारत के बाबुओं की बाबूगिरी, लालफीताशाही, काहिली, काम टालने की प्रवृत्ति एवं भ्रष्टाचार कुख्यात रही है। हमारी नौकरशाही पर शोध करने वालों ने सप्रमाण बताया है कि किस तरह एक फाइल का जीवन टेबुल से टेबुल घूमते हुए टिप्पणियों से भर जाता है पर निर्णय नहीं होता था। डॉ मनमोहन सिंह सरकार को यदि विदेशी पत्रिकाओं ने नीतिगत मामले में लगवाग्रस्त होने की संज्ञा दी उसमें नौकरशाही की बड़ी भूमिका थी। मंत्रालयों में डर का माहौल इतना था कि अधिकारी फैसला लेने से बचते थे। इसलिए टिप्पणी करके फिर फाइल वापस भेजने की  घातक संस्कृति पैदा हो गई थी। यह नहीं कह सकते कि सब कुछ आमूल रूप से बदल गया है पर बदलाव दिखता है। नरेन्द्र मोदी मंत्रियों के साथ नौकरशाही को भी अपनी टीम का अंग मानकर काम करते हैं। पहले कार्यकाल में जरूरत के मुताबिक बैठकों की श्रृखंला चलाई। 
अधिकारियों से बातचीत कर पूरा विजन दिया जिसे समयबद्ध तरीके से पूरा करना था। इस बार भी उन्होंने अपनी नई सरकार का पूरा लक्ष्य रख दिया है जो उनके घोषणा पत्र में है। 2024 तक का भी और आजादी के 75 वें वर्ष यानी 2022 तक के लिए भी। उन्होंने साफ किया है कि भारत का लक्ष्य अंतत: दुनिया का समृद्धतम और महानतम देश बनना है। इसे आम लोगों के जीवन स्तर को उठाते हुए हमें पांच लाख अरब की अर्थव्यवस्था में परिणत करना है। साथ ही समुद्र, आकाश एवं धरती तीनों पर अपनी रक्षा ताकत का सम्पूर्ण विस्तार करते हुए प्रभाव क्षेत्र भी बढ़ाना है। प्रधानमंत्री कहते रहे हैं कि लोगों की बढ़ती अपेक्षाओं को चुनौती के रूप में लेना है। जब राजनीतिक नेतृत्व का अपना विजन स्पष्ट हो तो नौकरशाही अनिश्चित नहीं रहती। उस विजन का ध्यान रखते हुए सभी विभागों को अगले पांच वर्ष की पूरी कार्ययोजना बनाना तथा उनसे संबंधित सारे निर्णयों की स्वीकृति 100 दिनों कर लिए जाने का टास्क दिया गया। अगले 100-200 दिनों तक हर दिन एक महत्त्वपूर्ण निर्णय लेना है। 
बैठकों में गरीबी उन्मूलन के अलावा सबसे ज्यादा फोकस कृषि, ग्रामीण विकास, पंचायती राज, आइटी क्षेत्र में उठाए जाने वाले कदमों, शैक्षणिक सुधार, स्वास्थ्य, उद्योग नीति, कौशल विकास और आर्थिक विकास तथा जनता को सरकारी कार्यो में सुविधाएं प्रदान करना रहा है। इसलिए एजेंडा में इनको सर्वोपरि स्थान मिल रहा है। मोदी भ्रष्टाचार और जनकार्यो में सरकारी औपचारिकताओं को कम करने पर हमेशा जोर देते हैं। इसलिए वे ऐसे तंत्र बनाने, सूचना प्रौद्योगिकी के ऐसे कार्यक्रम विकसित करने पर जोर दे रहे हैं, जिनसे जनता को सरकारी कार्यालयों के चक्कर न लगाना पड़े। मोदी ने अधिकारियों से गवर्नेंस में प्रौद्योगिकी का अधिक से अधिक इस्तेमाल करने का आग्रह किया, जिससे कार्यक्षमता बढ़ेगी और भ्रष्टाचार कम होगा। आम चुनाव से पहले अक्टूबर 2018 में प्रधानमंत्री ने पांच दौर की बैठकें नौकरशाहों के साथ की थीं, जिसके बाद आम आदमी से संबंधित अनेक योजनाओं ने तेज गति पकड़ी और उसका असर मतदाताओं पर हुआ। अतिरिक्त सचिवों और संयुक्त सचिवों के साथ बैठकों में उन्होंने नव भारत के निर्माण में पूरी प्रतिबद्धता से लगने तथा सुशासन की प्रक्रिया तेज करने के लिए कहा था। ये बैठकें द्विपक्षीय होती है, जिसमें नौकरशाह भी अपना पक्ष रखते हैं। 
नरेन्द्र मोदी ने 165 वर्ष पुराने नौकरशाही तंत्र के चरित्र और व्यवहार में, जिसकी आलोचना में लेखकों ने न जाने अलग-अलग कितने नाम दिए हैं, बिना ज्यादा नियम-कानून बदले व्यापक बदलाव की कोशिश की है और उसमें उन्हें सफलता भी मिली है। यह कहने में भी हर्ज नहीं है कि उन्होंने लकीर का फकीर बन अपनी जिम्मेवारियों से बचने के संस्कार वाले इस तंत्र, जिसे 'इस्पात घेरेÓ का नाम दिया गया, के अंदर नई सोच और एक हद तक जोश भी पैदा किया है। राजनेताओं के लिए सबसे बड़ी चुनौती भारी-भरकम और प्रभावी अफसरशाही को अपने लक्ष्य के अनुरूप चलने के लिए तैयार करने की होती है। नौकरशाहों में भी ऐसे हैं, जिनके अंदर अफसरी की हनक होती है। दृष्टिविहीन नेता केंद्र से प्रदेश तक नौकरशाही को आज्ञाकारी बनाने की नीति अपनाते हैं और जी हुजूरी की संस्कृति पैदा करते हैं। इससे नौकरशाही का राजनीतिकरण ज्यादा हुआ और कामचोरी तथा भ्रष्टाचार बढ़ा। एक साथ प्रदेशों में भारी संख्या में आइएएस और आइपीएस के अनावश्यक तबादलों की अभद्र परंपरा बन चुकी है। ईमानदार अधिकारियों के तबादले द्वारा उत्पीडऩ का रिकॉर्ड सामने आता रहता है। नरेन्द्र मोदी ने इसके विपरीत देश के विकास के लक्ष्य में उनको विसनीय सहयोगी बनाने की नीति अपनाई है जिसका प्रभाव पड़ा है और अफसरशाही के चरित्र में बदलाव आया है। जो काम में सक्षम नहीं हैं, उन्हें प्रधानमंत्री ने बाहर का रास्ता भी दिखाया है और यह क्रम जारी है। इससे बेहतर काम करने की संस्कृति का विकास हो रहा है। 
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