भारतीयों के लिए रविवार को स्विट्जऱलैंड का बासेल शहर तब यादगार बन गया जब स्टार बैडमिंटन खिलाड़ी पी.वी. सिंधु फाइनल फोबिया से मुक्त होकर विश्व चैंपियन बनी। रियो ओलंपिक में रजत पदक जीतने वाली सिंधु वर्ष 2017 व 2018 की विश्व चैंपियनशिप में फाइनल में स्वर्ण पदक से चूक गई थी। दरअसल, सिंधु विभिन्न प्रतियोगिताओं के फाइनल में 16 बार पहुंची और सिर्फ पांच बार ही जीत पायी। इस बार फाइनल में फोबिया से उबरने के लिये सिंधु खास रणनीति की तहत खेली और सोने का तमगा जीतने में कामयाब रही। वह पहली भारतीय महिला बैडमिंटन खिलाड़ी हैं, जिसने यह खिताब जीता। वैसे वह पूरे टूर्नामेंट में शुरू से ही अपना दबदबा कायम रखने में सफल हुई। वह अपना स्वाभाविक खेल खेली और अपने ऊंचे कद के चलते अपने विरोधियों पर भारी पड़ी। सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि उसने दुनिया की चोटी की वरीयता वाली खिलाडिय़ों को हराया। पांचवीं वरीयता हासिल सिंधु ने क्वार्टर फाइनल में विश्व की दूसरी वरीयता हासिल चीनी ताइपे की ताई जू यिंग को हराकर दुनिया को चौंकाया। इस तरह उसने अपने बेमिसाल खेल के जरिये जीत का सिलसिला बनाये रखा। सेमीफाइनल में भी सिंधु ने दुनिया की चौथी वरीयता प्राप्त चीन की चेन यू फेई को सहजता से परास्त किया। फाइनल तक पहुंचते-पहुंचते सिंधु अपना दबदबा कायम कर चुकी थी। फाइनल में जापान की ?खिलाड़ी और तीसरी वरीयता हासिल नोजोमी ओकूहारा को एकतरफा मुकाबलों में हरा दिया। सिंधु ने शानदार ढंग से फाइनल जीता और 2017 में फाइनल में हुई हार का बदला ओकूहारा से लिया। उसके आगे ओकूहारा उखड़ती नजर आई और सिंधु ने नया इतिहास रच दिया। निस्संदेह सिंधु ने अपनी इस कामयाबी के लिये भरपूर मेहनत तो की ही, वह उन खामियों से भी उबरी जो फाइनल में उसकी हार का कारण बनती रही हैं। अपने स्वाभाविक खेल के जरिये उसमें पैदा हुआ आत्मविश्वास उसकी शानदार जीत का सारथी बना।
यह संयोग ही है कि सिंधु की इस जीत के शोर में यह खबर दब गई कि विश्व बैडमिंटन चैंपियनशिप के पुरुष वर्ग में बी.साईं प्रणीत ने कांस्य पदक जीता। वह भी पुरुष एकल वर्ग में 36 साल बाद कांस्य पदक जीतने वाले पहले भारतीय बने। बहरहाल, सिंधु की कामयाबी सिंधु सी गहराई लिये हुए है जो चीन, जापान व अमेरिका वर्चस्व तोडऩे वाली है। निस्संदेह उसने अपने खेल की खामियों को सुधारकर बेमिसाल खेल दिखाया और सुनहरी कामयाबी हासिल की। इस दमदार व शानदार खेल ने उस कसक को भुला दिया है जो वर्ष 2013 व 2014 में कांस्य तथा वर्ष 2017 व 2018 में रजत जीतने के बावजूद बाकी थी। अब उसके खाते में विश्व चैंपियनशिप के स्वर्ण, रजत व कांस्य पदक दर्ज हो चुके हैं। निस्संदेह अब तक करीबी अंतर से हाथ से गोल्ड फिसलने का मलाल सिंधु को गहरे तक था। अब सिंधु विश्व चैंपियनशिप के महिला एकल वर्ग में सबसे अधिक पदक जीतने वाली खिलाडिय़ों में?शुमार हो गई है। उसने कहा भी है कि इस जीत के द्वारा मैंने अपने आलोचकों को जवाब दिया है। मौलिक प्रतिभा की धनी सिंधु की नजर अब अगले ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतने के लक्ष्य की ओर है। बैडमिंटन के प्रति उसके जुनून व समर्पण को देखते हुए यह लक्ष्य मुमकिन लगता है। निस्संदेह सिंधु की कामयाबी किसी प्रेरक कहानी सरीखी है जो बताती है कि लगातार हार के बाद भी यदि धैर्य न खोया जाये तथा लक्ष्य को केंद्र में रखा जाये तो कामयाबी कदम चूमती ही है। आमतौर पर लगातार हार के बाद तमाम दिग्गज भी हौसला खोने लगते हैं और विजय पथ से भटक जाते हैं। सिंधु ने मानसिक तौर पर भी अपने विरोधियों को परास्त किया। यही वजह है कि उससे बड़े वरीयता वाले खिलाड़ी भी उसके सामने पानी भरते नजर आये। निस्संदेह सिंधु की जीत हमारे आम जीवन में भी प्रेरणादायक है।
आसमानी बुलंदी