आखिरकार चुनाव आयोग ने हरियाणा और महाराष्ट्र में विधानसभा चुनावों के कार्यक्रम की घोषणा करके चुनावी संग्राम को हरी झंडी दिखा दी। केंद्र में मोदी सरकार की वापसी, उसके बदलावकारी फैसलों तथा दोनों राज्यों में विपक्ष के बिखराव से उत्साहित भाजपा अर्से से चुनावी तैयारी में जुटी थी। दिग्गजों को जहां संगठित पार्टी होने का फायदा मिला, वहीं बिखरे विपक्ष ने दमखम दिखाने का अवसर दिया। दोनों ही राज्यों में 21 अक्तूबर को चुनाव कराये जा रहे हैं और 24 अक्तूबर तक परिणाम भी आ जायेंगे। जहां हरियाणा में 90 सीटों के प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला होना है, वहीं महाराष्ट्र में कुल 288 सीटें हैं। हरियाणा में नब्बे प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला 1.82 करोड़ मतदाता करेंगे। वहीं महाराष्ट्र में 8.94 करोड़ मतदाता सरकार बनाने में निर्णायक भूमिका निभाएंगे। वर्ष 2014 में राजनीति की मुख्यधारा में नये बताये जा रहे मनोहर लाल खट्टर ने पिछले पांच सालों में खुद को साबित कर दिखाया। अब देखना यह है कि क्या वे फिर से हरियाणा के 'चौथे लालÓ साबित हो पाते हैं। पारदर्शी शासन के बूते उनकी सरकार ने कई निर्णायक फैसलों से जनता का अच्छा प्रतिसाद हासिल किया। खासकर व्यवस्था में भ्रष्टाचार खत्म करने, सरकारी नौकरियों में पारदर्शिता, जनकल्याणकारी नीतियों के बूते मनोहर लाल सरकार ने राज्य की जनता का विश्वास हासिल किया। उन्होंने खुद को न केवल गैर जाट नेता के रूप में स्थापित किया बल्कि जाट समुदाय का विश्वास हासिल करने का प्रयास किया। स्थानीय निकाय चुनाव व जींद उपचुनाव में जीत तथा लोकसभा में दस की दस सीटें हासिल करने का निष्कर्ष तो कम से कम यही है। दूसरे मुख्य प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस में नेतृत्व के संघर्ष और चुनावों की घोषणा से ठीक पहले नेतृत्व परिवर्तन करके पार्टी किस हद तक जनता का विश्वास हासिल कर पायेगी, कहना मुश्किल है।
वहीं महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ भाजपा व शिवसेना गठबंधन तमाम अंतर्विरोधों के बावजूद फिर से एक साथ चुनाव मैदान में हैं। पिछले चुनाव में अलग-अलग चुनाव लडऩे और फिर सरकार में शामिल होकर भाजपा-शिवसेना ने बताया कि मतभेद हैं, मनभेद नहीं हैं। इस बार भले ही सीटों के बंटवारे को लेकर मतभेद हों, मगर फिर भी दोनों दल कह रहे हैं कि मामला सुलझा लिया जायेगा। हरियाणा की तरह केंद्र में फिर मोदी सरकार की वापसी और हाल में लिये गए ऐतिहासिक फैसलों का लाभ इस गठबंधन को मिलेगा ही। यह बात अलग है कि सूखे व बाढ़ से जूझ रहे महाराष्ट्र में विरोध के सुर भी मुखर होते रहे हैं। भाजपा-शिवसेना गठबंधन के सामने कांग्रेस व एनसीपी गठबंधन सामने हैं। मगर जिस कांग्रेस में लंबे समय के बाद हाल ही में नया अध्यक्ष आया हो, वे पार्टी की नैया किस हद तक पार लगा पायेंगे, यह आने वाला वक्त बतायेगा। मगर कांग्रेस व एनसीपी से नेताओं का लगातार पार्टी छोड़कर भाजपा-शिवसेना में शामिल होना बहुत कुछ कहता है। यह भी हकीकत है कि पिछले पांच साल में हुए तमाम चुनावों में भाजपा व शिवसेना का पलड़ा भारी रहा है। बहरहाल, एक माह बाद राज्य की राजनीतिक तस्वीर स्पष्ट हो ही जायेगी