स्वर्ग के हकदार

 


 


 


 



संत तिरुवल्लुवर को बहुत से भक्त और शिष्य घेरे हुए थे। एक भक्त ने पूछा- प्रभु, स्वर्ग-नर्क की परिभाषा तो हम कई बार सुन चुके हैं। परंतु वास्तव में स्वर्ग और नर्क के अधिकारी कौन-कौन हैं, यह कैसे ज्ञात हो। संत बोले-पुत्र, अच्छा हो यदि जिज्ञासु जन मेरे साथ भ्रमण पर चल पड़ें। कुछ दूर चलने पर एक शिकारी एक हिरण का शिकार करके उसे कंधे पर लाता हुआ दिखाई दिया। उसे देखकर संत बोले-शिकारी इतने निकृष्ट कर्म कर रहा है, इसके लिए यहां भी नर्क समान है और मृत्यु पश्चात भी नर्क ही मिलेगा। आगे एक आश्रम के बाहर एक तपस्वी तप कर रहा था। संत ने कहा-इतना तप करते हुए यह नर्क समान कष्ट सह रहे हैं मगर वहां इन्हें स्वर्ग मिलेगा। एक वेश्यालय के आगे से गुजरते हुए, वेश्या के घुंघरुओं की आवाज़ सुनकर कहने लगे-देखो, यह भोग विलास में डूबी हुई इस समय दुनिया का हर सुख स्वर्ग समान ही भोग रही है। मगर इसके भविष्य में नर्क ही लिखा है। अंत में एक सद्गृहस्थ के घर के सामने सब विश्राम करने लगे। गृहस्थ सब के लिए शीतल जल ले आया। संत ने बताया-यह गृहस्थ अपनी गृहस्थी में रमकर भी दूसरों के सुख-दु:ख में सहभागी रहता है। इसके लिए तो इसका घर परिवार भी किसी स्वर्ग से कम नहीं है और बाद में स्वर्ग भी ऐसी ही जीवात्माओं के लिए है