-समाधान दिवस में जहर खाकर पहुंचे व्यक्ति को अस्पताल ले जाती पुलिस।

कार्यालयों के चक्कर काटकाट कर 'हताश' हैं फरियादी, उठा रहे आत्मघाती कदम

मथुरा।(आरएनएस) कान्हा की नगरी में पीडितों पर हताशा हावी हो रही है। यहां तक कि बिजली का बिल सही कराने के लिए महीनों तक एडियां रगडने के बाद भी समस्या का समाधान नहीं हो रहा है। गलती सरकारी विभागों की है लेकिन भुगत उपभोक्ता रहे हैं। सम्पूर्ण समाधान और थाना दिवसों का हाल भी अब किसी से छुपा नहीं रह गया है। खानापूर्ति से आगे इन आयोजनों का औचित्य लोगों को समझ नहीं आ रहा है। पीडित एक कार्यालय से दूसरे कार्यालय का चक्कर काटकाट कर थक रहा है लेकिन कहीं सुनवाई नहीं हो रही। हताशा में लोग आत्मघाती कदम उठा रहे हैं।

घटना-एक
25 नवम्बरः पानी घाट क्षेत्र में दबंगों से परेशान किसान ने मिट्टी का तेल डाल कर आत्महत्या का प्रयास किया। उसने चेतावनी दी है कि न्याय नहीं मिला तो पूरे परिवार के साथ आत्मदा करेगा। पुलिस किसान को थाने ले आयी। इससे पहले पीडित समाधान दिवस से लेकर मुख्यमंत्री तक अपनी पीडा पहुंचा चुका था

घटना-दो
05 अक्टूबरः राया के गांव नगला निवासी सुंदर लाल थाना राया में लगे समाधान दिवस में पहुंचता है। यहां से वापस आता है और फिर आरोपी के घर के सामने जहर खाकर समाधन दिवस में दोबारा आता है। यहां उसकी तबियत बिगडती है और उपचार के दौरान मौत हो जाता ही। पुलिस का कहना है कि वह पहली बार शिकायत लेकर थाने आया था।


घटना तीन
25 सितम्बरः थाना सदर बाजार के औरंगाबाद क्षेत्र की केशवपुरम कॉलोनी सी-6 निवासी शुभम चैधरी और डॉ. अंजलि शर्मा निवासी लक्ष्मी नगर थाना जमुनापार तीन बच्चों के साथ के साथ महंगी गाडी से आये और एसएसपी कार्यालय के सामने सडक पर गाडी में आग लगा कर ताबडतोड पफायरिंग की। उसक के मंसूबे कुछ जान लेने का भी था। यह ड्रामा करीब 1.5 घंटे तक चला।

घटना चार
8 सितम्बरः आरोपियों पर कोई कार्रवाई न होने से दुखी तीन तलाक पीडिता कोसीकलां निवासी समरीन की मां फरीदा ने जहरीला पदार्थ खा लिया। फरीदा के पति का आरोप लगाया था कि वे लोग एक महीने से थाने के चक्कर काट रहे हैं। एसएसपी के यहां भी शिकायत की, लेकिन पुलिस सुनवाई नहीं कर रही है।

घटना पांच
28 अगस्तः सुरीर कोतवाली में दंपति ने किया आत्मदाह
सुरीर कोतवाली में जोगेन्द्र ने अपनी पत्नी के साथ आत्मदाह कर लिया। इस मामले में हालांकि दो बार एफआईआर हुई और कुछ लोगों पर गंभीर धाराएं लगाई गयीं। पुलिस पर भी गंभीर आरोप लगे। जोगेन्द्र और उसकी पत्नी की उपचार के दौरान मौत हो गई।

जनता की पीडा को बता रहे साजिश
हद तो यह है कि जनता की पीडा को प्रशासन हर बार साजिश का नाम देकर नकार देता है। यह फेहरिस्त लम्बी होती जा रही है लेकिन पुलिस प्रशासन की ओर से हर बार यही कहा जाता है कि यह साजिश है। घटना के लिए कुछ लोगों ने उकसाया है। उन्हें भी नहीं छोडा जाएगा।  इस का असर यह पड रहा है कि पीडित की मदद को आगे बढने वाले लोगों के भी पैर ठिठक जाते हैं और पीडित अकेला पड जाता है।