श्रीलंका में चीनी चक्रव्यूह की चुनौती


गोताबाया राजपक्षे के राष्ट्रपति पद पर शपथ लेते ही जो पहली प्रतिक्रिया विश्लेषकों ने दी थी, वो ये कि श्रीलंका एक बार फिर से चीन की गोद में बैठ गया। पाकिस्तान भी इसी बात पर बल्लियों उछल रहा था। मगर, राष्ट्रपति गोता का यह बयान कि हमें चीन, भारत व पाकिस्तान से समान रूप से व्यवहार करना है, कम से कम इस्लामाबाद को संदेश दे गया कि उछलें नहीं, आगे-आगे देखिये होता है क्या। देश से बाहर गोताबाया कूटनीति की शुरुआत 29 नवंबर से होनी है, जब वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निमंत्रण पर नई दिल्ली में होंगे। यह पीएम नरेंद्र मोदी की रणनीतिक कुशलता की छोटी-सी परीक्षा भी है कि वे राजपक्षे भाइयों (गोताबाया और महिंदा) को अपने आईने में कैसे उतारते हैं। दो दिन पहले तक पीएम रह चुके रणिल विक्रमसिंघे अब सदन में नेता प्रतिपक्ष बन चुके हैं।
एक अच्छी बात यह है कि प्रधानमंत्री मोदी श्रीलंका के मामले में किसी किस्म का कूटनीतिक विलंब नहीं देखना चाहते। यह उसी का हिस्सा था कि राष्ट्रपति गोता के शपथ के कुछ घंटे बाद विदेशमंत्री एस. जयशंकर कोलंबो उनसे मिलने पहुंचे और पीएम की ओर से भारत आने का न्योता दिया। पीएम मोदी, सिरीसेना के समय तीन बार श्रीलंका का दौरा कर चुके हैं। आखिऱी बार, सीरियल विस्फोटों के तीन माह बाद, 9 जून, 2019 को पीएम मोदी कोलंबो गये थे। उस समय श्रीलंका में राष्ट्रवाद परवान चढ़ा हुआ था। निशाने पर मुसलमान संगठन थे, उनके विरुद्ध राष्ट्रवादी माहौल को समर्थन देने में पीएम मोदी को कोई परेशानी नहीं हुई। भारत फंसता वहां है, जहां इलमवाद को कुचलने के वास्ते वहां के बौद्ध राष्ट्रवादी मोर्चा कसते हैं।
13 मार्च, 2015 में जब पीएम मोदी श्रीलंका गये थे, 'इटीसीएÓ के तहत निवेश के कई सारे समझौते किये थे। उनमें त्रिंकोमाली को पेट्रोलियम हब बनाने, पूर्वी कोलंबो में कंटेनर टर्मिनल तैयार करने का संकल्प भी था। मगर, पिछली सरकार तक इस दिशा में कुछ ख़ास प्रगति नहीं हुई। 2014 में मोदी पार्ट वन के समय भारत ने 14 करोड़ 80 लाख डॉलर के दो एडवांस ऑफशोर पेट्रोल वेसल श्रीलंका को निर्यात किये थे। गोवा शिपयार्ड में निर्मित ये दोनों गश्ती जहाज 2017 और 2018 में श्रीलंकाई नौसेना को सौंप दिये गये। दोनों देशों की सेनाएं साझा सैनिक अभ्यास 2013 से करती रही हैं, जिसका कोड नेम 'मित्र शक्तिÓ है। 2017 में इसे आतंक निरोधक अभ्यास के निमित्त फोकस किया गया।
इस साल 7 सितंबर से 14 सितंबर, 2019 तक श्रीलंका-इंडिया नेवल एक्सरसाइज़ (एसएलआईएनईएक्स) त्रिंकोमाली में संपन्न हुई, जिसमें श्रीलंका के 323 नौसैनिकों ने हिस्सा लिया था। 'एसएलआईएनईएक्सÓ 2005 से जारी है। भारत-मालदीव के बीच 'दोस्तीÓ नामक कोस्ट गार्ड एक्सरसाइज़ 1991 से चली आ रही है। 2012 में इसमें श्रीलंका को सम्मिलित कर इसे त्रिपक्षीय तटरक्षक साझा अभ्यास का रूप दे दिया गया। ये छोटे-छोटे उदाहरण हैं, जिनके हवाले से हम कह सकते हैं कि भारत उभयपक्षीय सैन्य सहयोग के वास्ते लगातार प्रयास करता रहा है।
बावजूद इन सारे प्रयासों के श्रीलंका में एक 'स्कूल ऑफ थॉटÓ है जो भारत को कूटनीतिक रूप से काटने और सांस्कृतिक रूप से विपरीत दिशा में ले जाने का प्रयास करता रहा है। 17 अप्रैल, 2019 को श्रीलंका अपना पहला उपग्रह नासा के माध्यम से पृथ्वी की कक्षा में स्थापित करवा पाने में सफल रहा। 1 किलो 100 ग्राम का यह सेटेलाइट जापान के सहयोग से दो श्रीलंकाई वैज्ञानिकों ने विकसित किया था। महत्वपूर्ण यह सेटेलाइट नहीं है, जितना कि इसका नाम। काफी मंथन के बाद बौद्ध मठाधीशों ने इसका नाम रखा था 'रावणÓ! डेढ़ साल के वास्ते 'रावण-वनÓ पृथ्वी की निचली कक्षा में है, उसे रोज़ाना 15 तस्वीरें भेजनी है। रावण नाम रखने का पहला अभिप्राय यह था कि वह प्राचीन श्रीलंका के राजा थे, और दूसरा यह कि इससे सिंहाला राष्ट्रवाद को ताक़त मिलती है।
हालांकि जो लोग तमिलनाडु में द्रविड़ आंदोलन और उससे उपजी विचारधारा के समर्थक हैं, उन्हें शुरू से गुरेज़ नहीं कि रावण, श्रीलंकाइयों के लिए पूज्य हों। 19 मई, 2009 को प्रभाकरण के मारे जाने के बाद लिट्टे की जड़ें समाप्त मान ली गई थीं। तत्कालीन प्रतिरक्षा मंत्री गोताबाया राजपक्षे और राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे ने ही इसका सारा श्रेय लिया था। श्रीलंका, राष्ट्रवाद की स्वत: स्फूर्त लहर में इतना मदमस्त हुआ कि मानवाधिकार के सारे सवाल बेमानी हो गये। इसके एक साल के बाद नीदरलैंड की टिलबर्ग यूनिवर्सिटी ने श्रीलंकाई राष्ट्रवाद का सर्वे कराया था। उस सर्वे की टैग लाइन बड़ा रोचक थी-'रावणाइजेशनÓ!
कोलंबो विश्वविद्यालय में इतिहास के सीनियर प्रोफेसर निर्मल रजनीथ देवासिरी ने एक मुलाक़ात के दौरान बताया था कि सिंहाला बौद्धों का एक बड़ा हिस्सा रावण की मिथकीय शौर्यगाथा के बहाने भारत विरोध के तत्वों को समय-समय पर समाहित करता रहा है। टीवी, रेडियो पर रावण से संबंधित कार्यक्रमों को प्रोमोट करना, नुक्कड़ नाटकों, सांस्कृतिक महोत्सवों में रावण राजा की प्रशस्ति वाले गीत, मार्शल आर्ट 'अंगमपोराÓ का प्रदर्शन रावण राष्ट्रवाद को ही आगे बढ़ाता रहा है। गोताबाया ने श्रीलंका की प्राचीन राजधानी अनुराधापुरा जाकर राष्ट्रपति पद की शपथ ली, उसके पीछे भी राष्ट्रवाद को ही प्रज्वलित करना था। तो क्या भारत-श्रीलंका की कूटनीति में राम और रावण की विचारधारा को एक मंच पर लाना संभव होगा? इस प्रश्न को फिलहाल यहीं छोड़ देते हैं।
भारत के लिए श्रीलंका की वैचारिक चुनौती से अधिक चीन को काउंटर करना है। यह चीन की ही चाल थी कि श्रीलंका की घरेलू राजनीति में रॉ का हौवा निरंतर खड़ा किया गया। महिंदा राजपक्षे 2015 का संसदीय चुनाव हारते हैं, तो रॉ की वजह से। वे मिथ्या आरोप का स्तर गिराते चले गये। 2018 में राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना ने रॉ पर इल्जाम लगा दिया कि मुझे मारने की साजिश इस खुफिया एजेंसी के माध्यम से रची जा रही है। अब यह बीते दिनों की बात है। राष्ट्रपति गोताबाया राजपक्षे भारत यात्रा के दौरान उन तमाम भ्रांतियों को दूर करेंगे, ऐसी आशा की जानी चाहिए।
श्रीलंका में चीन की बेल्ट एंड रोड इनीशियेटिव (बीआरआई) को और आगे बढऩे से रोकना भारत के लिए बड़ी चुनौती है। श्रीलंका पर 65 अरब डालर का विदेशी कर्ज़ है, जिसमें से चीन को साढ़े आठ अरब डॉलर चुकता करना है। यह संभव भी नहीं कि भारत चीनी कर्ज को उतार दे। गोताबाया की जीत के बाद से चीन ने श्रीलंका में अपने सहयोग को याद दिलाया है। हंबनटोटा बंदरगाह, एमआर इंटरनेशनल एयरपोर्ट, कोलंबो-कटुनायक एक्सप्रेस-वे, नोरोच्चोलाई पावर स्टेशन, कोलंबो इंटरनेशनल फाइनेंशियल सिटी। ये वो उपलब्धियां हैं, जिनके हवाले से चीन, राजपक्षे बंधुओं के आगे चुग्गा फेंक चुका है!
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