अर्थव्यवस्था में आत्मविश्वास जगाने की जरूरत


भारत सरकार ने बीते समय में ऋण देने की मुहिम छेड़ रखी है। कुछ वर्ष पहले मुद्रा योजना बनाई गयी, जिसके अंतर्गत ग्रामीण क्षेत्रों के बैंकों ने घर-घर जाकर किसानों को ऋण दिए गए। छोटे उद्यमियों के लिए ऋण की ब्याज दरें कम की गयी। हाल ही में प्रॉपर्टी क्षेत्र के अटके हुए प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाने के लिए सरकार ने 10,000 करोड़ रुपए के ऋण बिल्डरों को देने का ऐलान किया है। निर्यातकों के लिए भी इसी प्रकार की योजनाएं बनाई गयी हैं। इन सब योजनाओं के बावजूद हमारी आर्थिक विकास दर गिरती ही जा रही है।
हमें ब्याज दर के महत्व और सीमा दोनों को समझना पड़ेगा। ब्याज दर कम करने से दो प्रभाव एक साथ पड़ते हैं। एक तरफ उपभोक्ता के लिए बैंक से ऋण लेकर बाइक, कार अथवा मकान खरीदना तथा बनाना आसान हो जाता है। दूसरी तरफ बैंक से ऋण लेकर उद्यमी के लिए फैक्टरी लगाना आसान हो जाता है। अत: ब्याज दर की कटौती से यदि उपभोक्ता और उद्यमी दोनों वास्तव में प्रेरित हो जाएं तो इन दोनों के बीच मांग और आपूर्ति का एक सुचक्र स्थापित हो जाता है। जैसे ब्याज दर कम होने से उद्यमी ने बाइक बनाने की फैक्टरी लगाई और उपभोक्ता ने बाइक खरीदी तो दोनों का काम चल निकलता है। वर्तमान समय में ब्याज दर में कटौती के बावजूद यह सुचक्र स्थापित नहीं हो पा रहा है। इसका एक संभावित कारण यह है कि सरकार ने साथ-साथ बैंकों से ऋण लेने वाले भ्रष्ट लोगों पर सख्ती की है। पहले तमाम प्रभावी लोग बैंक से ऋण लेकर रकम को हड़प जाते थे। अब ऐसा करना कठिन हो गया है। इसलिए हम मान सकते हैं कि चोरों द्वारा बैंक से ऋण कम लिए जा रहे हैं। लेकिन प्रश्न यह है ईमानदारों द्वारा बैंक से ऋण लेकर सुचक्र स्थापित क्यों नही हो पा रहा है?
यहां हम भारत और अमेरिका की तुलना कर सकते हैं। राष्ट्रपति ट्रम्प ने हाल में अमेरिका के केंद्रीय बैंक को मनाया है और अमेरिकी फेडरल रिज़र्व बोर्ड ने ब्याज दर में कटौती की है। साथ-साथ अमेरिका की सरकार के खर्च पर ध्यान देना होगा। वर्ष 2017 में अमेरिकी सरकार के राजस्व 3300 करोड़ डॉलर थे जो वर्ष 2019 में बढ़कर 3400 करोड़ डॉलर हो गये। इसी अवधि में अमेरिकी सरकार के खर्च 3900 करोड़ डॉलर से बढ़कर 4500 करोड़ डॉलर हो गये। यानी राष्ट्रपति ट्रम्प के कार्यकाल में अमेरिकी सरकार के राजस्व में केवल 100 करोड़ डॉलर की वृद्धि हुई जबकि उनके खर्च में 600 करोड़ डॉलर की वृद्धि हुई। जाहिर है कि अमेरिका में आर्थिक विकास के दो कारक एक साथ उत्पन्न हो गये हैं। एक तरफ फेडरल रिज़र्व बैंक ने ब्याज में कटौती की है और दूसरी तरफ अमेरिकी सरकार ने खर्च बढ़ाये हैं, जिनका सम्मिलित प्रभाव यह हुआ कि अमेरिका में विकास दर में इजाफा हुआ और वहां रोजगार भी उत्पन्न हुए।
अब इस घटनाक्रम की तुलना हम भारत से कर सकते हैं। इस वर्ष हमारे रिज़र्व बैंक ने पांच बार ब्याज दरों में कटौती की है, यद्यपि हाल में इस कटौती के दौर में ठहराव आया है। इस वर्ष के प्रारम्भ से अब तक रिज़र्व बैंक के पास बैंकों द्वारा जमा रकम पर ब्याज दर में 1.35 प्रतिशत की कटौती की गयी है। इसके समानान्तर बैंकों द्वारा उपभोक्ता को दिए जाने वाले ऋण पर ब्याज में भी 0.44 प्रतिशत की कटौती की गयी है। यानी अमेरिका और भारत दोनों में ब्याजदरों में कटौती हुई है। लेकिन भारत में इस विशाल कटौती का सुप्रभाव नहीं पड़ रहा है। इसका एक कारण यह दिखता है कि भारत में सरकार ने अपने कुल खर्चों को नियंत्रण में रखा है। ऊपर बताया गया है कि राष्ट्रपति ट्रम्प ने राजस्व की तुलना में खर्च में अधिक वृद्धि की है। भारत सरकार ने पूर्व में जो आय से अधिक खर्च हो रहा था, उस पर नियंत्रण करने की कोशिश की है। जहां अमेरिका में राजस्व में वृद्धि से बढ़कर खर्च किया जा रहा है वहीं भारत में राजस्व में वृद्धि से कम खर्च किया जा रहा है। अत: अमेरिका की तुलना में भारत के सरकारी खर्च में वृद्धि नहीं की जा रही है। दूसरा अंतर यह दिखता है कि राष्ट्रपति ट्रम्प का चिंतन अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर केन्द्रित है। उन्होंने चीन से ट्रेड-वॉर किया, जिससे अमेरिका की अर्थव्यवस्था सुदृढ़ हुई। उन्होंने भारत पर भी प्रतिबंध लगाये, जिससे अमेरिका की अर्थव्यवस्था सुदृढ़ हो। साथ-साथ वे अर्थव्यवस्था के हितों के विपरीत राजनीतिक कार्य भी करते रहे हैं। वे ईरान के परमाणु कार्यक्रम का विरोध करते रहे हैं। इस्राइल द्वारा विवादित भूमि पर कब्ज़ा करने का समर्थन करते रहे हैं। लेकिन उनका मूल ध्यान अमेरिकी अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने का है।
तुलना में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का ध्यान सामाजिक मुद्दों पर अधिक दिखता है जैसे कश्मीर से धारा-370 हटाना, गाय का संरक्षण करना, राम मंदिर को बनाना इत्यादि। अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रम्प और हमारे प्रधानमंत्री मोदी दोनों ही घरेलू उद्योगों को बढ़ावा देना चाहते हैं। राष्ट्रपति ट्रम्प ने 'मेक अमेरिका ग्रेट अगेनÓ का नारा दिया है। तो प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने 'मेक इन इंडियाÓ का नारा दिया है। लेकिन देश की मूल नीतियों का केंद्र अमेरिका में अर्थव्यवस्था दिखता है जबकि भारत में सामाजिक।
अमेरिकी सरकार के खर्च बढ़ रहे हैं और राष्ट्रपति ट्रम्प ने आर्थिक मुद्दों को प्रमुख बनाया है इसलिए वे उपभोक्ताओं को प्रेरित कर पा रहे हैं। उन्हें विश्वास दिला पा रहे हैं कि आने वाले समय में अर्थव्यवस्था की स्थिति सुधरेगी और इस विश्वास में वहां के उपभोक्ता ऋण लेकर खपत कर रहे हैं और ऋण का जो सुचक्र ऊपर बताया गया है वह वहां स्थापित हो रहा है। इसकी तुलना में भारत में हमारा मुख्य ध्यान सामाजिक मुद्दों पर है इसलिए ब्याज दर में भारी कटौती के बावजूद अपने देश में उपभोक्ता ऋण लेकर खपत करने के लिए तैयार नहीं हैं। उद्यमी ऋण लेकर फैक्टरी लगाने को तैयार नहीं हैं। ऋण और ब्याज दर घटाने से जो सुचक्र स्थपित होना चाहिए था वह नहीं हो रहा है। सारांश यह है कि ब्याज दर में कटौती की सार्थकता तब ही है जब मूल रूप से अर्थव्यवस्था में आत्मविश्वास हो। यदि सरकार खर्च बढ़ाये और जनता को विश्वास में ले कि उनका आर्थिक भविष्य अच्छा होगा तब ही ब्याज दर घटाना उपयुक्त है अन्यथा ब्याज दर घटना निष्प्रभावी होगा जैसा कि हमने पिछले एक वर्ष में होते देखा है।
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