हिंसा नहीं स्वीकार्य


लोकतंत्र में असहमति का हक हर व्यक्ति को है। लोकतांत्रिक ढंग से शांतिपूर्वक विरोध भी हमारा अधिकार है। मगर छात्र हो या आम नागरिक, किसी को यह हक नहीं है कि सफर कर रहे यात्रियों को आतंकित करके बसों में आग लगा दे। आग बुझाने आई दमकल गाडिय़ों को तोडफ़ोड़ दे। हाल ही में अस्तित्व में आये नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में जामिया मिल्लिया इस्लामिया के छात्रों के आंदोलन के बाद रविवार को राजधानी में जैसी आगजनी व हिंसा हुई, उसे दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जायेगा। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एस.ए. बोबडे ने जामिया वि.वि. तथा अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में हुई हिंसा के बाबत दो टूक शब्दों में कहा 'पहले छात्र हिंसा बंद करें, फिर हम सुनवाई करेंगे। उन्होंने कहा कि हम शांतिपूर्ण प्रदर्शन के खिलाफ नहीं हैं और अधिकारों के संरक्षण के प्रति अपनी िजम्मेदारी समझते हैं। वे छात्र हैं इसलिये उन्हें हिंसा करने और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने की अनुमति नहीं दी जा सकती। कानून-व्यवस्था बनाये रखना पुिलस का काम है, इसमें हम ज्यादा दखल नहीं दे सकते। जंग के माहौल में सुनवाई नहीं हो सकती।Ó नि:संदेह रविवार को दिल्ली व अलीगढ़ में जो कुछ हुआ वह दुर्भाग्यपूर्ण ही है। रात में दिल्ली पुलिस मुख्यालय पर जेएनयू के छात्रों द्वारा धरना देने के बाद जामिया के हिरासत में लिये गये छात्रों को रिहा कर दिया गया। मगर इस मामले में कतिपय राजनीतिक दलों व उनके छात्र संगठनों की सक्रियता चिंता का विषय हो सकती है, क्योंकि इससे देश में अराजकता को बढ़ावा मिलता है। सोमवार को भी लखनऊ स्थित नदवा कालेज में उग्र प्रदर्शन हुए और पुलिस पर पत्थरबाजी की गई। हैदराबाद की मौलाना आजाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी में छात्रों के विरोध प्रदर्शन हुए। नि:संदेह, नागरिकता संशोधन कानून को लेकर हो रहे उग्र प्रदर्शन चिंता का विषय है।
पूर्वोत्तर से शुरू हुआ विरोध का सिलसिला पूरे देश को अपनी चपेट में लेता जा रहा है। हालांकि, पूर्वोत्तर में विरोध की अलग व्याख्या की जा रही है, मगर देश?के अन्य भागों में इसके विरोध की अलग व्याख्या है। राजनीतिक दल अपनी सुविधा के अनुसार इसकी व्याख्या कर रहे हैं और विपक्षी सरकारें अपने राज्यों में इसे लागू न करने की बात कर रही हैं। पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी खुलेआम कानून को राज्य में लागू न करने की बात कर रही हैं। दुर्भाग्यपूर्ण ही है कि राज्य में लगातार जारी हिंसा व बड़े पैमाने पर ट्रेन व बसें जलाये जाने के बाद जिस तरह से दोषियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई है, उससे उपद्रवियों के हौसले बुलंद हैं। केंद्र सरकार के स्तर पर यह कमी रही है कि विधेयक जल्दबाजी में लाकर पारित करवा लिया गया। इसको लेकर जिस तरह के राष्ट्रीय विमर्श की जरूरत थी, उसकी अनदेखी की गई। वहीं विपक्ष भी इस मुद्दे पर बहस करने के बजाय आंदोलन में कूद पड़ा। राजनीतिक व्याख्याओं के बाद अल्पसंख्यकों में असुरक्षाबोध उत्पन्न हुआ है। इस घटनाक्रम के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने ट्वीट करके कहा है कि मैं आश्वस्त करना चाहता हूं कि नागरिकता कानून से किसी भी धर्म का कोई व्यक्ति प्रभावित नहीं होगा। यह कानून उनके लिये है जो वर्षों से जुल्म सह रहे हैं, उनके पास भारत के अलावा कोई ठिकाना नहीं है। इस कानून को संसद के दोनों सदनों ने बड़ी संख्या में राजनीतिक दलों के सहयोग से पारित किया है। इसमें भारत की सदियों पुरानी स्वीकार्यता की संस्कृति, सद्भावना, करुणा और भाईचारा समाहित है। बहस, संवाद व असहमति लोकतंत्र का जरूरी हिस्सा है मगर हिंसा स्वीकार्य नहीं है। बहरहाल, सरकार उन भ्रांतियों को दूर करे, जिसके चलते असंतोष के स्वर बुलंद हुए हैं। सरकार समझे कि कानून व्यवस्था बनाये रखने के लिये पुलिस जरूरी होती है, मगर हर समाधान पुलिसिया तौर-तरीके से संभव नहीं हो सकता। जामिया वि.वि में पुलिस कार्रवाई की देशव्यापी प्रतिक्रिया को एक सबक की तरह लेना चाहिए।
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