सतसंग से जीवन को बनाया जा सकता है आध्यात्मिक: व्यास दीक्षा


उन्नाव। स्थानीय गिरजाबाग स्थित भरत मिलाप के निकट वकील सुनील चंद्र श्रीवास्तव के आवास परिसर में चल रही श्रीमद भागवत कथा के चौथे दिन वृन्दावन धाम से आयी कथा व्यास देवी दीक्षा अवस्थी ने कहा कि महाराजा परीक्षित श्रंृगी ऋषि से शाप पाने के बाद वह दुखी न होकर अत्यंत प्रसन्न हुए। उनकी प्रसन्नता का कारण यह था कि मृत्यु से पूर्व के सात दिन संतों का संग मिलेगा तथा मृत्यु के विषय में विस्तार से जानने का अवसर मिलेगा। देवी दीक्षा ने महाराजा परीक्षित के विषय में उनकी प्रसन्नता के रहस्य को उजागर करते हुए कहा कि उन्हे गर्भ मे ही भगवान श्रीकृष्ण का सानिध्य मिला था। उसके बाद से वह भगवान का सानिध्य पाने हेतु व्याकुल रहते थे। उन्हे जब यह पता चला कि सात दिन बाद उनकी मृत्यु हो जाने के पश्चात पुनः भगवान का सानिध्य मिल जायेगा। धु्रव के चरित्र को सुनाते हुए कथा वाचक देवी दीक्षा ने कहा कि भगवान नारायण ही एक मात्र ऐसे है जो प्रसन्न होने पर वह सब कुछ दे सकते है। जो पूरी तरह से अप्राप्त हो, बशर्ते भगवान के प्रति भक्ति निष्ठा और विश्वास उतना ही होना चाहिए जितना धु्रव में था। जीवन के मर्म व रहस्य को बताते हुए कथा वाचक देवी दीक्षा ने एक संतान विहीन राजा की कथा सुनाते हुए कहा कि राजा ने अपने मंत्रियों से कहा कि मेरे शव दाह के पश्चात मेरे महल के सामने जो व्यक्ति मिले उसे पांच वर्ष के लिए राजा बना देना उसके बाद उसे जंगल में छोड देना ताकि जंगल के हिंसक जीव उसे खा डाले। वहीं उन्होने यह भी बताया कि यदि आशा और तृष्णा न मरी जो शरीर का बार बार मरना व्यथ ही होगा। इसके लिए सतसंग आवश्यक है।